इस कानून को भूपेश सरकार ने किया समाप्त
इस कानून को भूपेश सरकार ने किया समाप्त
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लॉकडाउन और कोरोना संकट के बीच केंद्र की पूर्व यूपीए सरकार के वन अधिकार कानून को छत्तीगसढ़ की मौजूदा सरकार ने बदल दिया है. सरकार ने अब वन विभाग को सामुदायिक वनाधिकार के लिए नोडल विभाग बनाने का नया आदेश जारी किया है. इसका विरोध शुरू हो गया है. विरोध करने वालों का आरोप है कि कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव के दौरान वनाधिकार कानून के सुचारू क्रियान्वयन का वादा किया था लेकिन नए आदेश में सरकार कानून के मूलभूत विचारों और प्रावधानों के खिलाफ जाती नजर आ रही है.

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इस मामले को लेकर सामाजिक संगठनों ने आशंका जताई कि सरकार वन विभाग संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के जरिए ग्राम सभा के अधिकारों का हनन करके अपने एजेंडे को आगे बढ़ाएगी. इससे समाज में द्वंद्व खड़ा हो सकता है. केंद्र की पूर्व यूपीए सरकार ने वन कानून के लिए आदिम जाति विभाग को नोडल एजेंसी बनाया था. केंद्र के आदिवासी कार्य मंत्रालय ने 27 सितंबर 2007 और 11 जनवरी 2008 को राज्यों को लिखे पत्र में जोर दिया कि आदिवासी विकास विभाग ही नोडल एजेंसी होगा.

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आपकी जानकारी के लिए बता दे कि सरकार ने सामुदायिक वन अधिकारों की मान्यता, विशेषकर ग्राम सभा की ओर से वन का प्रबंधन करने का अधिकार सुनिश्चित करने की प्रतिद्धता दिखाई है लेकिन ताजा बदलाव के बाद विरोध तेज हो गया है. संगठनों ने मांग की है कि व्यक्तिगत और सामुदायिक वन अधिकारों की पूर्ण मान्यता होने तक वन भूमि से विस्थापन या धारित भूमि का अधिग्रहण या पुनर्वास पैकेज प्रस्ताव नहीं दिया जाना चाहिए.

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