इंदौर में इनके हाथों से बने चाय और पोहे का जवाब नहीं
इंदौर में इनके हाथों से बने चाय और पोहे का जवाब नहीं
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इंदौर - यूँ तो इंदौर का नाम खाने - पीने के लिए शौक़ीन शहरों में शुमार किया जाता है. यहां खाने-पीने की कई दुकाने हैं. जिनमें 56 दुकान और सराफा प्रसिद्ध है लेकिन यहां महू नाका स्तिथ जिन पोहे बनाने वाले अशोक राठौर का जिक्र किया जा रहा है उनकी हर बात अनूठी है. पहला तो यह कि अशोक रात 2 बजे उठते हैं और 3.15 बजे अपनी पत्नी के साथ महू नाका स्थित अपनी छोटी सी दुकान पर पहुँच जाते हैं. भट्टी पर बनने वाले व्यंजनों का आप में से कितने लोगों ने आनंद लिया है मुझे नहीं पता लेकिन इनके हाथों से बने चाय और पोहे इंदौर में अब तक स्वाद लिए गए चाय-पोहा में सर्वश्रेष्ठ हैं. मैं यह बात तब कह रहा हूँ जब इंदौर के हर गली-मोहल्लों से लेकर बड़ी दुकानों तक के पोहों का स्वाद कई-कई बार ले चुका हूँ और स्वाद पर अपनी पकड़ भी किसी से कमज़ोर नहीं है.

बता दें कि अशोक जी की ही तरह इनकी भट्टी भी ख़ास है जिस पर कई लोगों की निगाह लगी हुई है. 10 रुपए के पोहे और 6 रुपए की चाय आपको रात 3.15 बजे से सुबह 9 बजे तक उस सुख की प्राप्ति कराती है जो तीर्थाटन या पर्यटन में भी नहीं मिलता. आज सुबह ब्रह्ममुहूर्त में 3 .16 बजे जब इनसे गुफ़्तगू हो रही थी, पता चला बरसों पहले उन्होंने ही पोहा बनाने के गुर अपनी पत्नी को सिखाए थे. तब से वे ही पोहे तैयार करती हैं. यह सब हाथों के जादू का कमाल है.

अशोक जी ख़ुद यह स्वीकार करते हैं कि 9 बजे से शाम तक जब उनके बेटे दुकान पर बैठते हैं लेकिन ग्राहकों को 'वह' आनंद नहीं आता. दरअसल यह सारा खेल इस 'वह' का ही है. यही कला है, यही हाथ जादू और यही...क्या कहते हैं उसे-पाक कला की प्रवीणता जो हर किसी को हासिल नहीं होती.

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