पकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी, 2 दिनों में दो सिख दुकानदारों को बदमाशों ने मारी गोली
पकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार जारी, 2 दिनों में दो सिख दुकानदारों को बदमाशों ने मारी गोली
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इस्लामाबाद:  1947 में भारत से अलग होकर इस्लामी मुल्क बने पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कोई आज की बता नहीं है। भारत लगातार इस मुद्दे को उठाता रहा है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय और मानवाधिकार संगठनों के कानों पर जूं नहीं रेंगती और पड़ोसी मुल्क में अल्पसंख्यकों पर अत्याचार लगातार बढ़ता ही जा रहा है।  बीते दो दिनों के अंदर ही पाकिस्तान में दो सिख दुकानदारों को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया गया है। शनिवार को पेशावर में 32 वर्षीय मनमोहन सिंह को राशिदगढ़ी बाजार में सरेआम गोली मार दी गई। 

इससे पहले शुक्रवार (23 जून) को एक दुकानदार तरलोक सिंह को अज्ञात बदमाशों ने गोली मार दी थी। हालांकि, उनकी जान बच गई थी। मृतक मनमोहन सिंह की राशिदगढ़ी में किराने की दुकान थी। वह अपने परिवार के एकलौते कमाने वाले थे। मनमोहन अपनी दुकान में ताला लगाकर घर जा रहे थे। इसी दौरान बाइक सवार हमलावरों ने उनपर गोली दाग दी। जिससे मौके पर ही उनकी जान चली गई।  मनमोहन का एक भाई दिव्यांग है, एक बहन है और एक बेटा भी है। मनमोहन के मां-बाप सहित  पूरा परिवार उनपर ही आश्रित था। इन घटनाओं के बाद यूनाइटेड सिख की ओर से कहा गया है कि पाकिस्तानी राजनयिक से मुलाकात करके पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर चर्चा की जाएगी। 

सिखों के संगठन ने कहा है कि, पाकिस्तान में सिखों पर हो रहे अत्याचार से हम बेहद दुखी हैं। ये हमले ना सिर्फ भयावह हैं बल्कि मानवाधिकारों को तार-तार करने वाले भी हैं। पाकिस्तान सरकार को इस प्रकार के हमले रोकने के लिए हर संभव कोशिशें करने चाहिए। हम पीड़ित लोगों के लिए इंसाफ की मांग करते हैं। बता दें कि 1947 में विभाजन के बाद से ही पाकिस्तान में सिख और हिन्दू समुदाय अल्पसंख्यकों के रूप में रह रहे हैं। 

सिखों के संगठन ने कहा कि इस घटना की निष्पक्ष जांच करवाई जानी चाहिए। जो लोग मेहनत कर अपना और अपने परिवार का पेट भरते हैं, आखिर उनपर क्यों हमले किए जा रहे हैं। यह कौन सी  साजिश है। क्या इन हमलों के माध्यम से कोई संदेश देने (आतंकित करने) की कोशिश की जा रही है? बता दें कि पेशावर में करीब 300 सिख परिवार रहते हैं। हालांकि वे डर के साए में जिंदगी काटने के लिए विवश हैं। 

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