यहाँ जलती हुई होलिका के बीच से गुजरे पंडा, यह है प्राचीन परंपरा
यहाँ जलती हुई होलिका के बीच से गुजरे पंडा, यह है प्राचीन परंपरा
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होली का पर्व बहुत ही धूम-धाम से मनाया गया। आप सभी जानते ही होंगे होली के पहले पूरे देश में होलिका दहन किया गया था। ऐसे में मथुरा में एक ऐसी जगह है, जहां होलिका दहन की परंपरा बिल्कुल अलग और अनोखी है। जी दरअसल यहां पर आज भी हिरणाकश्यप और भक्त प्रहलाद की होलिका दहन की परंपरा निभाई जाती है। इस परम्परा में 15 फुट ऊंची 24 फुट चौड़ी होलिका से एक ब्राह्मण पंडा धधकती आग से होकर गुजरता है और सुरक्षित निकलकर परंपरा का निर्वहन करता है। सुनकर आपको हैरानी हो रही होगी लेकिन यह सच है। यहाँ होने वाली इस परंपरा को देखने के लिए दूर-दूर से हजारों की संख्या में लोग आते हैं। वैसे इस बार इस परंपरा को गांव के ही मोनू पंडा ने निभाई।

जानिए पौराणिक कथा?- जिस गाँव के बारे में हम बात कर रहे हैं वह जिला मुख्यालय से करीब 55 किलोमीटर दूर फालैन गांव है। इस गाँव को प्रहलाद का गांव भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि गांव के निकट एक साधु तपस्या कर रहे थे और उन्हें सपने में डूगर के पेड़ के नीचे एक मूर्ति दबी होने के बारे में पता चला। इस सपने को देखने के बाद गांव के पंडा परिवार के सदस्यों ने संत के मार्गदर्शन में खुदाई की थी। खुदाई में भगवान नृसिंह और भक्त प्रहलाद की प्रतिमाएं निकलीं। यह सब देखकर खुश होकर तपस्वी साधु ने आशीर्वाद दिया कि 'इस परिवार का जो व्यक्ति शुद्ध मन से पूजा करके धधकती होली की आग से गुजरेगा, उसके शरीर में स्वयं प्रहलादजी विराजमान हो जाएंगे। आग की ऊष्मा का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।' यह सब होने के बाद यहां प्रहलाद मंदिर बनवाया गया और मंदिर के पास ही प्रह्लाद कुंड का निर्माण करवाया गया। उस दिन से लेकर आज तक प्रहलाद लीला को साकार करने के लिए फालैन गांव में आस-पास के पांच गांवों की होली रखी जाती है। आपको बता दें कि गांव का पंडा परिवार प्रहलाद लीला को आज भी जीवंत किए हुए हैं।

इस बार बीते सोमवार को सुबह के चार बजे प्रह्लाद जी की माला गले में धारण कर मोनू पंडा (28 वर्षीय) प्रह्लाद कुंड गये। यहां उन्होंने डुबकी लगाई। फिर अखंड दीपक की लौ पर होलिका से गुजरने की इजाजत मांगी। होलिका में प्रवेश की लग्न शुरू होते ही मोनू जलती हुई होलिका में कूद गए। उसके बाद मोनू पंडा 15 फीट ऊंची होलिका पर कुल 19 कदम रखकर सकुशल प्रह्लादजी के मंदिर में जा पहुंचे। यहाँ गाँव में रहने वाले लोग बताते हैं कि यह परंपरा पिछले 5000 सालों से चली आ रही है। यहाँ परंपरा के तहत होलिका दहन के 25 दिन पहले ही फालैन का एक पंडा तप पर बैठ जाता है और इस बीच वह अन्न का सेवन नहीं करता है बल्कि केवल फल खाता है।

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