'फ्री के वादों' पर लगाम लगाएगी सुप्रीम कोर्ट, पूरा न करने पर रद्द हो सकती है सियासी दलों की मान्यता
'फ्री के वादों' पर लगाम लगाएगी सुप्रीम कोर्ट, पूरा न करने पर रद्द हो सकती है सियासी दलों की मान्यता
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नई दिल्ली: सर्वोच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) दाखिल हुई है, जिसमें केंद्र सरकार और देश के निर्वाचन आयोग को सियासी दलों को विनियमित करने और उन्हें जरूरी तर्कसंगत घोषणापत्र वादों के लिए जवाबदेह बनाने के लिए निर्देश देने की मांग की गई है. यह याचिका वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने अपने वकील अश्विनी कुमार दुबे के जरिए दाखिल की है. याचिकाकर्ता ने निर्वाचन आयोग से चुनाव चिन्ह को जब्त करने और चुनावी घोषणापत्र में किए गए अपने आवश्यक तर्कसंगत वादों को पूरा करने में नाकाम रहने वाले सियासी दलों की मान्यता निरस्त करने का निर्देश देने की भी मांग की है.

अपनी याचिका में वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने सर्वोच्च न्यायालय से यह निर्देश देने और घोषित करने का अनुरोध किया है कि चुनाव घोषणापत्र एक दृष्टि दस्तावेज है, जो सियासी दल के इरादों, उद्देश्यों और विचारों की एक प्रकाशित घोषणा है. यह किसी राजनीतिक दल के चुने जाने पर उसके विशेष लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. उन्होंने कानून और न्याय मंत्रालय को पंजीकृत और मान्यता प्राप्त सियासी दलों के कामकाज को विनियमित करने और जरूरी तर्कसंगत घोषणापत्र वादों के लिए उन्हें जवाबदेह बनाने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने की भी मांग की. 

याचिकाकर्ता ने कोर्ट से कहा है कि लोकतंत्र का आधार निष्पक्ष चुनावी प्रक्रिया है. यदि चुनावी प्रक्रिया की अखंडता के साथ समझौता किया जाता है, तो प्रतिनिधित्व की धारणा खाली हो जाती है. राजनीतिक दल तर्कहीन मुफ्त चीज़ों का वादा कर रहे हैं और आवश्यक वादे पूरे नहीं कर रहे हैं.  याचिकाकर्ता ने बताया कि केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग ने राजनीतिक दलों के कामकाज को विनियमित करने और घोषणापत्र को विनियमित करने के लिए कोई कदम नहीं उठाए हैं, इसलिए न्यायालय ही नागरिकों की एकमात्र उम्मीद है.

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