भारत का वो महान गणितज्ञ, जिन्हे देवी महालक्ष्मी खुद सिखाती थी गणित, दुनियाभर ने माना लोहा
भारत का वो महान गणितज्ञ, जिन्हे देवी महालक्ष्मी खुद सिखाती थी गणित, दुनियाभर ने माना लोहा
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नई दिल्ली: भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की आज यानी 22 दिसंबर को जयंती है, इस दिन को उन्हें सम्मान देने हेतु ‘राष्ट्रीय गणित दिवस (National Mathematics Day)’ के रूप में मनाया जाता है। श्रीनिवास रामानुजन पर कई डॉक्यूमेंट्री और फ़िल्में भी बन चुकी हैं। गणित को लेकर उन्होंने कई जबरदस्त सिद्धांत दिए। साथ ही उन्होंने कई पुरानी समस्याओं को हल भी किया। उनके दिए कई समीकरणों पर आज तक स्टडी चल ही रही है। महज 32 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था, मगर तब तक देश-विदेश में वो अपना लोहा मनवा चुके थे।

श्रीनिवास रामानुजन ने कई ऐसी गणितीय सवालों का समाधान किया, जिसे असंभव माना जाता था। उस वक़्त के बड़े अंग्रेज गणितज्ञ गॉडफ्रे हैरोल्ड (GH) हार्डी ने पत्राचार के दौरान रामानुजन की क्षमता को पहचाना और उन्हें कैम्ब्रिज बुलाने का प्रबंध किया। हार्डी ने बताया था कि वो श्रीनिवास रामानुजन के थ्योरम्स से हैरान रह गए थे। उनका कहना था कि इस प्रकार की चीज इससे पहले कभी नहीं देखी गई थी। निधन के 56 वर्षों के बाद जब श्रीनिवास रामानुजन की एक नोटबुक सामने आई थी, तो उस समय के पूरे विश्व के गणितज्ञों में इसके कंटेंट चर्चा का विषय बन गए थे।

श्रीनिवास रामानुजन का ईश्वर में अटूट विश्वास था। आज भले ही भगवान राम या श्रीकृष्ण में श्रद्धा रखने वालों को वामपंथी लोग गँवार घोषित कर देते हैं और नास्तिक होने को ही बुद्धिजीवी होने का प्रमाण मानते हैं, उन्हें श्रीनिवास रामानुजन के संबंध में जानना चाहिए। नमक्कल की महालक्ष्मी उनकी पारिवारिक इष्टदेवी थीं और उनमें श्रीनिवास रामानुजन की अगाध श्रद्धा थी। रामानुजन कहते थे कि उनके लिए उस गणितीय समीकरण का कोई मतलब नहीं है, जो ईश्वर की धरना का प्रतिनिधित्व नहीं करता हो। रामानुजन शुद्ध शाकाहारी थे।

भारत के अन्य प्राचीन गणितज्ञों की तरह ही रामानुजन भी गणितीय समीकरणों के अंतिम नतीजे तक पहुँचते थे और बीच की प्रक्रियाओं को नोट करने में उनकी खास रुचि नहीं होती थी। वो फॉर्मूला का सिर्फ अंतिम परिणाम और एक मोटा-मोटी समरी ही अपनी नोट बुक में रखते थे। यही कारण रहा कि, जब उनकी नोटबुक मिली, तो कई गणितज्ञों को उनके समीकरणों को समझने में सालों लग गए। रामानुजन का स्पष्ट कहना था कि उनकी प्रतिभा, ज्ञान और तमाम गणितीय खोज नमक्कल की महालक्ष्मी की ही देन है। रामानुजन को ‘Highly Composite Numbers’ पर रिसर्च करने के लिए PhD मिला था। वो यूनाइटेड किंगडम (UK) की ‘रॉयल सोसाइटी’ के दूसरे भारतीय फेलो थे और सबसे युवा भी। 100 वर्षों से हजारों गणितज्ञ जिन समस्याओं के हल के खोज कर रहे थे, उन्हें भारत के इस महान गणितज्ञ ने चुटकियों में हल कर दिया।

 

श्रीनिवास रामानुजन का कहना था कि सोते वक़्त महालक्ष्मी स्वयं उनके साथ बैठती हैं और उन्हें गणितीय समीकरणों को हल कर के बताती हैं। सपने में उन्हें महालक्ष्मी का हाथ दिखता था, जिससे वो कुछ लिखती रहती थीं और ये गणित से ही संबंधित होता था। बता दें कि, नामगिरी या नमक्कल – ये महालक्ष्मी के ही नाम हैं। इंग्लैंड में रहने के दौरान भी श्रीनिवास रामानुजन रोज़ाना सुबह उठ कर स्नान करते थे और महालक्ष्मी की पूजा करते थे। सर्द प्रदेश इंग्लैंड में रोज नहाना असामान्य बात थी और वहाँ के वातावरण में खानपान की वजह से भी रामानुजन अभ्यस्त नहीं हो पाए और उन्हें बीमारियों ने घेर लिया था। रामानुजन ने अपने अल्प जीवन काल में 3900 के लगभग फॉर्मूले/समीकरण दिए। दरअसल, श्रीनिवास रामानुजन की माँ भी नामगिरी देवी की भक्त थीं।

दरअसल, रामानुजन के माता-पिता को जब शादी के कई वर्षों बाद तक भी उन्हें संतान नहीं हुई, तो उन्होंने भी माँ नामगिरी के मंदिर जाकर प्रार्थना की थी। रामानुजन की माँ और दादी इस बात पर पूर्ण विश्वास करती थीं कि महालक्ष्मी ही उन्हें गणितीय समीकरणों का ज्ञान देती हैं। जब हार्डी ने रामानुजन को कैम्ब्रिज आने का निमंत्रण दिया था, तब भी रामानुजन अनुमति मांगने नमक्कल स्थित महालक्ष्मी मंदिर पहुँचे थे और कहते हैं कि 3 दिनों बाद समुद्री यात्रा के लिए देवी से उन्हें इजाजत मिली थी।

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