70 साल बाद TATA को वापस मिली Air India, जानिए कैसे सरकार ने छीन ली थी
70 साल बाद TATA को वापस मिली Air India, जानिए कैसे सरकार ने छीन ली थी
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नई दिल्ली: एयर इंडिया को खरीदने कोर टाटा ग्रुप अपनी बड़ी उपलब्धि मान रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि टाटा के लिए एयर इंडिया सिर्फ एक व्यवसाय का माध्यम ही नहीं था, बल्कि यह उनके खास प्रोजेक्ट में शामिल था। बता दें कि लगभग 70 वर्षों बाद टाटा ने एयर इंडिया को सरकार से वापस ले लिया है। दरअसल, एयर इंडिया 1947 के बाद से देश के लिए एक चमकते गहने की तरह था। इसकी शुरुआत और इसके संचालन के तरीके पर तत्कालीन भारत सरकार को भी गर्व था। 

1930 के दशक में एयर इंडिया को टाटा एयरलाइंस के नाम से शुरू किया गया था। JRD टाटा को उम्मीद थी कि आजाद भारत को यह एयरलाइंस कंपनी नई ऊंचाइयों पर ले जाने में सहायता करेगी, मगर ऐसा हो नहीं सका।  शुरुआती दिनों में JRD ने तत्कालीन सरकार को प्रस्ताव दिया था कि एयर इंडिया इंटरनेशनल के तहत एक इंटरनेशनल सर्विस की शुरुआत एक सहयोगी कंपनी के तौर पर की जाए। इसके लिए सरकार ने अपनी सहमति भी दे दी और 1948 में नेहरू सरकार ने टाटा एयरलाइंस की 49 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। इसके 5 वर्षों बाद भारत सरकार द्वारा 1953 में एयर कॉरपोरेशन कानून लाया गया और टाटा एयरलाइंस की हिस्सेदारी में अपनी बढ़त बना ली। बाद में सरकार ने इसका नाम बदलकर ‘एयर इंडिया इंटरनेशनल’ रख दिया।

दरअसल दूसरा विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने कई डकोटा विमानों को बाजार में उतारा था और उस दौरान कई उद्योगपति इस व्यवसाय में उतर गए थे। वहीं भारत में जहां मुश्किल से कुछ कंपनियां ही टिक पाती थीं, एक दर्जन से ज्यादा एयरलाइन कंपनियां सामने आ गईं। हालांकि, सभी का व्यवसाय एक जैसा नहीं रहा। टाटा एयरलाइंस को छोड़कर बाकी लगभग सभी को घाटा हो रहा था। इसी दौरान अंबिका एयरलाइंस और जुपिटर एयरवेज ने अपने आप को दिवालिया घोषित कर दिया। ऐसे में तत्कालीन भारत सरकार ने इसका राष्ट्रीयकरण करने का प्रस्ताव किया। 

सरकार के इस फैसले के खिलाफ JRD टाटा ने आवाज उठाई। उस समय सरकार ने 11 एयरलाइनों का राष्ट्रीयकरण करने का निर्णय लिया था। ऐसे में टाटा समूह अकेले विरोध करने में अधिक देर ना टिक पाया। इसके बाद सभी भारतीय विमानन कंपनियों को एक में मर्ज कर दिया गया और इस पर सरकार का कब्ज़ा हो गया। बता दें कि तत्कालीन सरकार ने एयर इंडिया को खरीदने के एवज में टाटा समूह को 2.8 करोड़ रुपये दिए थे।

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