आखिर कैसे पिछड़े वर्ग की उम्मीद बन रही अनुप्रिया, जानिए...
आखिर कैसे पिछड़े वर्ग की उम्मीद बन रही अनुप्रिया, जानिए...
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नई दिल्ली: वर्ष 1995 के उस दौर में जब एक तरफ उत्तरप्रदेश राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के माहौल से गुजर रहा था, वहीं दूसरी ओर मायावती अम्बेडकरवादियों और दलित, शोषित वर्ग को एकतरफा ही गिना जा रहा था, ऐसे में डॉ. सोनेलाल ने कांशीराम और बहुजन समाज से इतर, खुद की पार्टी 'अपना दल' की नींव रखी और पार्टी झंडे को केसरिया व नीले में रंग दे डाला। इस बात में कोई भी शक नहीं है कि अच्छी तरह समझते थे कि आने वाले समय में देश का राजनीतिक ऊंट कैसे बैठने वाला है। 

बता दें कि वे यूपी के 6 फीसदी कुर्मी वोटर्स को साथ लेकर चलने का गुणा-गणित, अंतिम जातिगत जनगणना के आधार पर समझ चुके थे। उनकी राजनीतिक सूझबूझ के परिणामस्वरूप आज उन्ही कुछ फीसदी वोटों के दम पर उनकी पार्टी  सत्ताधारी हो चुकी थी, और यूपी कैबिनेट से लेकर केंद्रीय मंत्रिमंडल तक, अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गए थे। लेकिन जो डॉ. सोनेलाल 10 वर्ष और दूसरी पार्टी और लगभग 14 वर्ष तक अपनी पार्टी बनाकर सामाजिक न्याय और विकास के लिए संघर्ष करते रहे परन्तु खुद एक भी चुनाव नहीं जीत पाए, उनकी पार्टी आज केंद्र व  स्टेट गवर्नमेंट के लिए सूत्रधार साबित होती हुई दिखाई दे रही है तो इसमें एक सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण हाथ, उनकी तीसरी बेटी अनुप्रिया पटेल का सबित हुआ।  

तेज तर्रार भाषण शैली और अपनी बात पर अडिग, जन लोकप्रियता की ओर तेजी से कदम बढ़ातीं अनुप्रिया, राजनीति में एक के बाद एक लंबे-लंबे कदम नाप रही हैं। विधायक से सांसद और फिर केंद्रीय मंत्री तक के सफर में उन्होंने कई पेंचीदा परिस्थितियों में कठिन और सार्थक निर्णय लिए हैं, फिर वह पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्रालय के गठन का जिम्मा हों या ओबीसी वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की अगुवाई करनी हों, या दो फांक में बंट चुकीं पार्टी की कमान सँभालने से लेकर बीजेपी के सम्मुख अपने पक्ष और विचारधारा को लेकर अडिग रहने तक, एक सशक्त नेता के रूप में राजनीतिक गलियारों में अपनी एक विशिष्ठ और अलग छवि विकसित करने में अनुप्रिया सबसे आगे रही हैं। पारिवारिक कलेश के बाद उन पर ये भी आरोप लगे कि जो घर परिवार की न हो सकी वो जनता की क्या होगी। हालांकि हाल में पार्टी के आलाकमान पर लगे टिकट बेंचने और पैर छूने के लिए पैसे देने जैसे आरोप, पार्टी को मिया बीवी प्राइवेट लिमिटेड जैसे चलाने के इल्ज़ाम, कहानी को दूसरी दिशा में मोड़ देते हैं। लेकिन कामयाबी के पंख पसरते देख, उन्हें कुतरने की शैली राजनीति में पुरानी है। मेरे हिसाब से अनुप्रिया और अपना दल (एस) का सुनहरा सफर अभी अपने शुरूआती दौर में है और एक लम्बी दूरी तय करने के लिए तैयार है।  

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