इंदिरा गांधी कृषि विवि में पहली बार प्रयोग हो रहा शुरू, अब इजराइल की तकनीक से पकड़ेंगे मछली
इंदिरा गांधी कृषि विवि में पहली बार प्रयोग हो रहा शुरू, अब इजराइल की तकनीक से पकड़ेंगे मछली
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रायपुर: मछली पालकों को अब तालाब खुदवाने की आवश्यकता नहीं होगी, बल्कि खेत या घर के आसपास 250 स्क्वायर फीट के सीमेंट के टैंक में मछली पालन कर सकते हैं। जानकारी के अनुसार बता दें कि प्रदेश में पहली बार यह तकनीक ब्राजील के आधार पर इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में शुरू हो रही है। वहीं विवि के मत्स्य वैज्ञानिक डॉ.एस सासमल ने जानकारी देते हुए बताया कि बायोफ्लॉक तकनीक अन्य योजनाओं की अपेक्षा कम खर्चीली व बेहतर उत्पादन देने वाली है। 

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वहीं बता दें कि इसे मध्यम मछली पालक अपनाकर छोटी-सी जगह में छह से आठ माह में दो क्विंटल मछली तैयार कर सकते हैं। तैयार मछलियों का वजन आधा से एक किलो होगा, जिसे मार्केट में 100 से 200 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बेचा जा सकता है। यहां बता दें कि मछली पालन अभी समुद्र, डैम और ताल-तलैया में होता आ रहा है। इसमें सिर्फ बड़े कारोबारी ही आगे आते हैं। इजराइल, इंडोनेशिया जैसे देशों में मछली के काफी शौकीन हैं। वहां कई परिवार मिलकर मछली पालन बायोफ्लॉक पद्धति से कर हैं। 

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गौरतलब है कि इस व्यवसाय में सबसे अधिक मछली के भोजन पर खर्च आता है। वहीं बता दें कि इसमें मछलियों के अपशिष्टों को भोजन में बदलने की तकनीक अपनाई जाएगी। इसके लिए बेनी फिशियल वैक्टीरिया डालेंगे, जिससे मछलियों के दाने पर आ रहा खर्च चौथाई हो जाएगा, जो कि अमूमन दिन भर में मछलियों को दो बार दाना डालना होता है। यहां बता दें कि इसे अपनाने से एक बार ही दाना देना पड़ेगा, इसलिए जिस तरह से भारत में आधुनिक कृषि को बढ़ावा दिया जा रहा है, उसी तरह से छत्त्तीसगढ़ में बायोफ्लॉक तकनीक के बेहतर परिणाम से मध्यम वर्ग के किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी होगी।


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