मजीठिया मामले में काश सुप्रीम कोर्ट ऐसा कर देता
मजीठिया मामले में काश सुप्रीम कोर्ट ऐसा कर देता
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देश के अधिकांश अखबार मालिकों के खिलाफ माननीय सुप्रीमकोर्ट में अवमानना का केस चल रहा है। इस मामले में माननीय सुप्रीमकोर्ट में डेट तो अभी आगे नहीं पड़ा है मगर माननीय सुप्रीमकोर्ट कुछ चीजें कर दे तो सभी अखबार मालिकों की नसें ना सिर्फ ढिली हो जायेंगी बल्की देश भर के मीडिया कर्मियों को इंसाफ भी मिल जायेगा।

इसके लिये सबसे पहले जिन समाचार पत्रों की रिर्पोट कामगार आयुक्त ने सुप्रीमकोर्ट में भेजी है उसमें जिन अखबार मालिकों ने जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश नहीं लागू किया है या आंशिक रुप से लागू किया है ऐसे अखबारों के मैनेजिंग डायरेक्टर, डायरेक्टर, पार्टनर और सभी पार्टनरों को अदालत की अवमानना का दोसी  मानते हुये उनके खिलाफ कामगार आयुक्त को निर्देश दे कि उनके खिलाफ पुलिस स्टेशन में एफ आई आर दर्ज करादे और  सभी जिलाधिकारियों , तहसीलदारों को निर्देश दे कि उनके खिलाफ रिकवरी कार्रवाई शुरु की जाये। और उनको जमानत भी माननीय सुप्रीमकोर्ट से तभी प्राप्त हो जब वे मीडियाकर्मियों को उनका पुरा बकाया एरियर और वेतन तथा प्रमोशन  दें। 

जिन मीडियाकर्मियों ने मजीठिया का क्लेम लगाया या याचिका दायर की ऐसे जितने मीडियाकर्मियों का प्रबंधन ने ट्रांसफर या टर्मिनेशन किया है ऐसे मीडियाकर्मियों के ट्रांसफर और ट्रमिनेशन पर रोक लगा दे। अब बाकी बचे ऐसे अखबार मालिक जिन्होेने कामगार आयुक्त को पटा कर यह रिर्पोट लिखवा लिया कि उनके यहां मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश लागू है ऐसे अखबारों की स्कूटनी  करायी जाये। इसके लिये प्रदेश स्तर पर एक जांच कमेटी बनायी जाये।

इस कमेटी में आयकर विभाग के अधिकारी, हाईकोर्ट के सेवानिवृत जज, पत्रकारां द्वारा प्रत्येक राज्य में चुने गये उनके प्रतिनिधि और सुप्रीमकोर्ट के एडवोकेट हो। यह कमेटी सभी अखबारों में यह विज्ञापन जारी करे कि इन अखबारों ने दावा किया है कि ये अपने कर्मचारियों को जस्टिस मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिश दे रहे हैं। अखबार मालिकों के एक दावे की जांच के लिये तीन दिवसीय एक कैंप लगाया जारहा है अगर किसी भी कर्मचारी को जो इन अखबारों में काम करते हैं उनको वेज बोर्ड के अनुसार वेतन नहीं मिल रहा है तो वे इस कैंप में संपर्क करें।

इस कैंप में आयकर अधिकारी अखबारों और उनके प्रबंधन की सहयोगी कंपनियोंके 2007 से 10 तक की बैलेंससीट और दुसरे कागजात लेकर आयें। इस कैंप में कामगार आयुक्त इस दावे की पुस्टी के सभी कागजात प्रमोशन लिस्ट लेकर आयें जिसकी एक सीए भी जांच करे और मीडियाकर्मियों की सेलरी स्लीप तथा दुसरे संबंधित कागजातों की उसी समय जांच कर अखबार के मैनेजिंग डायरेक्टर, डायरेक्टर, पार्टनर और सभी पार्टनरों को अदालत की अवमानना का दोसी  मानते हुये उनके खिलाफ कामगार आयुक्त को निर्देश दे कि उनके खिलाफ पुलिस स्टेशन में एफ आई आर दर्ज करादे और  सभी जिलाधिकारियों , तहसीलदारों को निर्देश दे कि उनके खिलाफ रिकवरी कार्रवाई शुरु की जाये। और उस अखबार के सभी मीडियाकर्मियों को उनका अधिकार दिलाया जाये। साथ ही इसकी पुरी रिर्पोट माननीय सुप्रीमकोर्ट में भेजी जाये। इसके बाद जितने मामले 17.2 के लेबर कोर्ट में चल रहा हैवे खुद ब खुद मीडियाकर्मी वापस लेलेंगे।

इस पुरी प्रक्रिया में 6 माह से ज्यादा का समय ना लगे। साथ ही जो मीडियाकर्मी 2007 से 2011 तक जिस पद पर था उसी पद को आधार माना जाये और उनका पद या विभाग या कंपनी  ना बदला जाये।  कास सुप्रीमकोर्ट ऐसा कर देता।

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