2009 दंतेवाड़ा केस: 13 साल पुरानी याचिका सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज, याचिकाकर्ता पर 5 लाख का जुर्माना
2009 दंतेवाड़ा केस: 13 साल पुरानी याचिका सुप्रीम कोर्ट में ख़ारिज, याचिकाकर्ता पर 5 लाख का जुर्माना
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नई दिल्ली: नक्सल विरोधी अभियान के दौरान छत्तीसगढ़ में आदिवासियों की न्यायेतर (Extrajudicial) हत्या की तफ्तीश को लेकर 13 वर्ष पुरानी याचिका को सर्वोच्च न्यायालय ने ठुकरा दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता 5 लाख रुपये का अर्थदंड भी लगाया है। वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह जांच करने की इजाजत दी है कि कुछ लोग और संगठन, अदालत का इस्तेमाल कथित तौर पर वामपंथी चरमपंथियों को बचाने के लिए तो नहीं कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता हिमांशु कुमार और 12 अन्य लोगों की ओर से वर्ष 2019 में दायर की गई याचिका पर फैसला दिया है। इससे पहले कोर्ट ने 19 मई को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। साथ ही अदालत ने याचिकाकर्ता कुमार को चार सप्ताह के अंदर 5 लाख रुपये का जुर्माना जमा करने के लिए कहा है। जुर्माना जमा नहीं करने की स्थिति में कुमार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि याचिकाकर्ता खुद माओवादियों के साथ सहानुभूति रखता है। उन्होंने दंतेवाड़ा में वर्ष 2009 में 17 आदिवासियों की हत्या के मामले में छत्तीसगढ़ पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के विरुद्ध CBI जांच की मांग की थी।

फरवरी 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के जिला नयायधीश जीपी मित्तल को 12 आदिवासी याचिकाकर्ताओं के बयान दर्ज करने को कहा था। अदालत ने पूरी प्रक्रिया की वीडियोग्राफी करने की बात भी कही थी। इसके साथ ही उन्होंने याचिकाकर्ताओं को सुरक्षा प्रदान करने के भी आदेश जारी किए थे। इसके बाद जिला जज ने 19 मार्च 2010 को बयानों को लेकर रिपोर्ट जमा की थी। उस समय सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को रिपोर्ट देने के आदेश दिए थे। इस साल केंद्र सरकार ने गृह मंत्रालय के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी। 

इस याचिका में कहा गया था कि जिला न्यायाधीश की एक रिपोर्ट कोर्ट रिकॉर्ड्स से गायब हो गई थी, जो सरकार को मार्च 2022 में मिली। केंद्र के मुताबिक, रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि शिकायतकर्ताओं ने जिला जज के समक्ष बयान दिए थे कि कुछ अज्ञात लोगों ने जंगल से आकर ग्रामीणों का क़त्ल किया है। साथ ही किसी ने भी सुरक्षा बलों के सदस्यों पर सवाल नहीं उठाए थे। इसके बाद केंद्र ने अदालत से किसी भी केंद्रीय एजेंसी को जांच के निर्देश देने का अनुरोध किया था। इसके माध्यम से उन लोगों और संगठनों की पहचान की बात की गई थी, जो हिंसक माओवादी गतिविधियों को बचाने के लिए मुकदमेबाजी में शामिल हैं।

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