लखनऊ: उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले के एक गांव में 100 बंदरों की मौत हो जाने के एक सप्ताह बाद, बरेली में भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई) की शव परीक्षा रिपोर्टों से पता चला है कि चूहे को मारने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशक खाने के कारण इतनी बड़ी संख्या में वानरों की मौत हुई है. रिपोर्ट आने के बाद प्रशासन ने दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने और वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का आश्वासन दिया है.
जिले के दबर्सी गांव के निवासियों ने पहले नज़दीकी कारखाने पर दोष लगाया था कि नूडल कारखाने द्वारा फेंके गए ख़राब नूडल्स को खाने से वानरों की मौत हुई है इसके लिए गांव वालों ने जांच की मांग भी की थी. जिसके बाद प्रशासन ने आगे की जांच के लिए मृत वानरों के शरीर को आईवीआरआई भेजा था. राज्य के पशुपालन विभाग के अतिरिक्त निदेशक राकेश मोहन दीक्षित ने कहा, "आईवीआरआई की रिपोर्टों से पता चला है कि 'फोसपिन' नामक रसायन वाले कीटनाशकों का इस्तेमाल खेतों में चूहों को मारने के लिए किया जाता है, जिसमे जस्ता और एल्युमुनियम भी पाया जाता है. राकेश मोहन ने बताया कि इसी कीटनाशक के सेवन से वानरों की मौत हुई है.
करीब 1 हफ्ते पहले गांव वालों ने वन विभाग को वानरों की मृत्यु के बारे में सुचना दी थी, जिसके बाद वन विभाग की टीम ने जांच कर दबर्सी गांव और उसके आस पास बिखरे कई वानरों के शवों को देखा था. मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी (सीवीओ) ब्रजवीर सिंह के नेतृत्व में डॉक्टरों की एक टीम ने एक शव परीक्षा आयोजित की थी लेकिन उनकी मृत्यु के कारण निर्णायक रूप से अनुमान लगाने में असमर्थ थे, जिसके बाद शवों को आईवीआरआई भेजा गया था.
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