Sep 15 2016 05:18 PM
वो कहते है न कि नींद का कोई घर, कोई शहर नहीं होता. नींद वो मुसाफ़िर होती है, जहां आ जाए, वहीं बिस्तर लगा लेती है. इस मायने में बच्चे बड़े अमीर होते हैं क्योंकि उन्हें करवटें बदलनी नहीं पड़ती.
नींद उन पर कुछ खास ही मेहरबान होती है, कहीं बैठे नहीं कि आंखें बंद. बच्चे नहीं देखते कि कौन सी जगह सोने लायक है और कौन सी नहीं.
उनको नींद को अपनाकर आंखें मूद लेने में ही सुकून मिलता है. कभी-कभी तो उनके सोने की जगह और स्थिति इतनी मज़ाकिया होती है कि हंसते-हंसते आंखों से आंसू आ जाते हैं.
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