विश्व पर्यावरण दिवस: कुदरत का सबसे बड़ा गुनहगार है इंसान

जीवन और प्रकृति का एक अटूट संबंध है. कही यह प्रत्यक्ष है, कही अप्रत्यक्ष. जीवन के हर पल में हम प्रकृति का दोहन कर रहे है. जल, थल, नभ, वायु, हर रूप में हम प्रकृति के ऊपर निर्भर है. मगर लगातार दोहन से प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और परिस्थितिया भयावह होती जा रही है. विकराल परिणामों के रूप में हम प्राकृतिक आपदाओं से रूबरू भी हो चुके है. प्रकृति यु ही नाराज नहीं हुई है. दशको से चली आ रहे हमारा गैर जिम्मेदाराना रवैया इसका प्रमुख कारण है. हम सिर्फ दोहन करना जानते है पुनर्विकास और संरक्षण को हम अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते. ऊपर से सूख सुविधाओ की अंधी होड़ में हम पागल हुए जा रहे है.

आज को पूर्ण सुखमय बनाए जाने में लगे हम कल के परिणाम की नहीं सोचते हुए आज उस मुहाने पर आ खड़े है, जहा से दूर दूर तक सिर्फ विनाश विनाश और विनाश ही दिखाई देता है. ग्लोबल वार्मिंग, भूकंप, सुखा, बाढ़, को कुदरती आपदा की बजाय इंसान जनित विपदा कहना ज्यादा सही होगा. आज विश्व पर्यावरण के बारे में कई तरह की चर्चाये चल रही है, होनी भी चाहिए समय की मांग है.

दुनिया भर की सरकारे, संस्थाये, प्रकृति प्रेमी, विज्ञानी इस पर चिंतित है, मगर हालात लगभग बेकाबू है, जंगल विनष्ट हो चुके है,नदियां  सुख रही है, भूगर्भीय तापमान चरम पर है, समुद्र ज़मीन की और बड़ रहा है, ज्वालामुखी फुट रहे है, ओजोन में छेद हो गया है, वायु प्रदुषण चरम स्तर पर है, ग्लेशियर पिघल रहे है, कुल मिलाकर पर्यावरण असंतुलित हो गया है इसके विभिन्न कारण है, मगर इन सब कारण की साँझा जिम्मेदारी एक कारक की है मनुष्य.

 

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