मर्दानियों की दिलेरी या हाईलाईट न होने का दर्द!
मर्दानियों की दिलेरी या हाईलाईट न होने का दर्द!
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बस में सफर करते समय जब आपके कानों में अखियों के झरोखों से मैंने देखा जो सांवरे, मन में तुम ही तुम मुस्काए जैसे गीत रस घोलते हैं तो आपका मन भी किसी को देखते ही पसंद कर लेने की यादों से भर जाता है, लेकिन देश में ताज़ा हालात जिस कदर सामने आ रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि ये गीत अब भूली बिसरी बातें ही हो जाऐंगे। जी हां, अब तो हर तीसरे दिन छेड़छाड़ और आंख मारने जैसी घटनाओं को लेकर मर्दानियां सामने आने लगी हैं, ऐसा लगता है जैसे इन मर्दानियों ने रानी लक्ष्मीबाई के रेकाॅर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है। ज़़रा सी बात हुई नहीं कि उसे छेड़छाड़ की शक्ल देकर हंगामा मचाया जा रहा है। यह एक नए तरह का चलन है। हालांकि महिलाओं से छेड़छाड़ की घटनाऐं निंदनीय हैं लेकिन इसका यह आशय नहीं कि हर पुरूष पर छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया जाए, बीते कुछ वीडियो भी मर्दानियों की दिलेरी को लेकर सोश्यल नेटवर्किंग साईट्स पर हवा हुए लेकिन जब इन वीडियो की हकीकतें सामने आई तो मर्दानियां वहां से हवा - हवाई हो गईं।

मीडिया में लोकप्रियता बटोरने और पुरस्कृत होने की चाहत के साथ ही जिस तरह से ज़रा - ज़रा सी बातों पर कानून हाथ में लिया जा रहा है वह समाज को न तो सही दिशा दे पा रहा है और न ही स्वस्थ्य नागरिकता का निर्माण कर पा रहा है। ऐसे में समाज आंख के बदले आंख के सिद्धांत तक पहुंच सकता है और इसी से हमारी सामाजिकता समाप्त होती जा रही है। तैश में मर्दानियां लोगों को पीट देती हैं, और रही सही कसर भीड़ में मौजूद कथित समाज के ठेकेदार पूरी कर देते हैं। किसी लडके पर छेड़छाड़ और बदतमीजी का आरोप लगने के बाद तो ये लोग इस तरह रिएक्ट करने लगते हैं जैसे ये दबंग स्टार हो गए हों। मगर ये यह भूल जाते हैं कि इनमें से कुछ लोग ऐसी ही हरकतें करते हैं लेकिन उस समय ये खुद को सही साबित करने में लगे रहते हैं, बहरहाल अब हमारे देश की न्याय व्यवस्था भी इसी राह चल पड़ी है। पुरूष प्रधान से स्त्री प्रधान मानसिकता की अंधी दौड़ में दौड़ रहा यह समाज बात - बात में स्त्री हितैषी होने का दिखावा करने लगा है।

कुछ समय पूर्व ही न्यायपालिका ने एक ऐसी व्यवस्था दी थी जिसमें यह आदेश निहित था कि लड़की को घूरने भर से ही आरोपी को सजा मिल सकती है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 के मार्च माह में तत्कालीन यूपीए सरकार ने बलात्कारी रोधी विधेयक (एंटी रेप बिल) को मंजूरी दी गई थी। जिसमें लड़की को घूरने पर भी सज़ा का प्रावधान किया गया था हालांकि यह विधेयक था तो बलात्कार की घटनाओं को रोकने के लिए लेकिन इसके बाद भी बलात्कार की घटनाऐं नहीं थमी अलबत्ता मर्दानियों के फर्जी वीडियो जरूर सामने आए और इसके साथ ही समाज में वैमनस्य की भावना सामने आई, अब तो महिलाऐं अकारण ही पुरूषों पर आरोप मढ़ने लगी है। ऐसे में समाज में स्त्री और पुरूष के बीच एक खाई निर्मित हो रही है और समाज में वैचारिक कमजोरी सामने आ रही है। इस तरह के नियमों के अस्तित्व में आने के बाद महिलाऐं और मुखर हुई हैं और बदले की भावना से लोगों पर आरोप मढ़ने लगी हैं, इस मामले में इस तरह के निर्णय का दुरूपयोग होने की बात भी सामने आ रही है। स्त्री हितैषी होने की चाहत में समाज अपना ही नुकसान कर रहा है। समाज में वैमनस्य, अराजकता तो फैल रही है साथ ही, स्त्री के साथ शोषित व्यवहार न होने के बाद भी स्त्री खुद को शोषित और पगदलित समझ रही है।

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