महिलाओं के अधिकार को रौंदती पुरानी परम्पराएं
महिलाओं के अधिकार को रौंदती पुरानी परम्पराएं
Share:

आज दुनिया 21वी सदी में पहुंच चुकी हैं. आज की तारीख में महिलाएं ना सिर्फ घर से बाहर निकल कर काम काज कर रही हैं बल्कि पुरुषों को जोरदार टक्कर भी दे रही हैं. फिर चाहे वो कोई खेल प्रतिस्पर्धा हो, एयर प्लेन उड़ाना हो या फिर अंतरिक्ष की उड़ान भरना हो. हर फिल्ड में, हर जगह पर महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं. 

लेकिन फिर एक छोटी सी और बहुत पुरानी सी परंपरा एक झटके में महिलाओं का अधिकार छीन लेती हैं. अब आप ही बताए गुस्सा किसे नहीं आएगा. अब तक तो आप जान ही चुके होंगे कि हम हाल ही में मंदिर में प्रवेश को लेकर हुए शनि शिंगणापुर के विवाद की चर्चा कर रहे हैं. 

मर्द और या महिला, हमे तो नहीं लगता कि भगवान अपने भक्तों में जेंडर को लेकर भेदभाव करेंगे. उनके लिए उनके सभी भक्त समान होते हैं. तो फिर क्यों कोई इस 400 वर्ष पुरानी परंपरा को सीने से लगाकर बैठा हैं यह तो वही जाने. हम तो यहाँ सिर्फ इतना कह सकते हैं कि सिर्फ जेंडर के आधार पर यह तय कर लेना कि कौन मंदिर में जा कर भगवान के दर्शन करेगा और कौन सिर्फ बाहर से ही हाथ जोड़ खड़ा रहेगा, पूरी तरह से गलत हैं. 

यदि महिला पीरियड में हैं और आप उसे मंदिर में प्रवेश नहीं करने दे रहे हैं तो हम यह बात समझ सकते हैं लेकिन बाकी महिलाऐं जो उस पर्टिकुलर दिन पीरियड्स में नहीं हैं. उनका क्या कसुर हैं? उन्हें मंदिर में प्रवेश क्यों नहीं दिया जा रहा हैं? अभी हाल ही में हुई घटना में जब एक महिला ने शनि भगवान की मूर्ती पर तेल चढ़ा दिया तो कुछ महान पंडितों ने इसे 400 वर्ष पुरानी परंपरा का उलंघन बताया और शनि मूर्ती को फिर से स्नान और अभिषेक कर पवित्र किया. 

हम इन पंडितों से पूछना चाहते हैं कि क्या घर पर जब आपकी पत्नी, बहन या माँ आपको, घर को या भोजन को छूती हैं तो क्या आप तब भी रोज सब कुछ पवित्र करवाते फिरते हैं? नहीं ना. तो फिर भगवान के मंदिर में ऐसा क्यों? यह सिर्फ किसी एक मंदिर तक ही सिमित नहीं हैं. भारत में आज भी ऐसे कई मंदिर हैं जहाँ महिलाओं का मंदिर में प्रवेश करना निषेध हैं. 

हिन्दुस्तान की यही समस्यां रही हैं कि यदि पुराने ग्रंन्थ या किसी किताब में कोई बेतुकी परंपरा लिखी हुई हैं तो हम सालों तक उस परंपरा को गले से लगाए रखते हैं. उसके पीछे कोई लॉजिक हैं भी या नहीं यह देखना पसंद नहीं करते. अब हमारी सती प्रथा को ही ले लीजिए. इस प्रथा के अनुसार अपने पति की मृत्यु के पश्चात पत्नी को ज़िंदा ही अपने पति की चिता पर बैठ प्राण त्यागने होंते हैं. अब ये भला कहाँ का इन्साफ हैं. आखिर हमने इस बेतुकी प्रथा को अतीत के पन्नो में दफना दिया ना? तो फिर बाकी की बेतुकी प्रथान को दफनाने में इतना समय क्यों? 

आज हम सभी को खुद से सवाल करना होगा. आखिर इन बेतुकी परम्पराओं और प्रथाओं का अंत कब होगा? आखिर कब महिलाओं को पूरी तरह से बराबरी का हक़ मिलेगा? आखिर कब पुरुष वर्ग महिलाओं को अपने से नीचा और कमजोर समझना बंद करेगा? आखिर कब? 

'अंकित पाल' 

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -