मुंबई में विरोध की राजनीति का बोलबाला हो रहा है। महानगर पालिका चुनाव में वर्ग विशेष के वोटर्स को लुभाने के लिए लोगों के रोजगार को छीना जा रहा है। राजनेताओं के ये हथकंडे पुराने हैं मगर फिर भी वे कुछ पारंपरिक वोटर्स के लिए ऐसा करने में लगे हैं हालांकि अब मतदाता भी जागरूक हो गया है और वह इस तरह के हथकंडों के फेर में उलझने वाला नहीं है। वह तो विकास का पैमाना सामने रखता है। उसे अपने क्षेत्र का विकास चाहिए। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के कथित कार्यकर्ताओं द्वारा एक उत्तर भारतीय फल विक्रेता के फल फैंककर उसे यहां कारोबार न करने देने की चेतावनी दी गई साथ ही उसे बाहरी भी बताया।
ऐसे में विरोध की राजनीति फिर तेज हो गई। वह मुंबई जहां हर दिन बड़े पैमाने पर लोग रोजगार की तलाश में आते हैं जो लोगों की उम्मीदों का शहर है वहां पर एक फल विक्रेता के साथ मारपीट करना कहां तक उचित है। जब भारतीय संविधान इस देश के प्रत्येक नागरिक को कहीं भी घूमने और कहीं भी रोजगार पाने के साथ कहीं भी रहने की आजादी देता है तो फिर नागरिकों के अधिकार का इस तरह से हनन क्यों किया जाता है।
हालांकि यह बात सही है कि अधिक लोगों के बढ़ने से क्षेत्र विशेष में रोजगार के अवसर प्रतिस्पर्धा के दायरे में आ जाते हैं और वहां के मूल निवासियों को तुलनात्मक तौर पर संसाधन और रोजगार इतनी सुविधा के अनुसार नहीं मिल पाते हैं मगर किसी के साथ हिंसा बरतकर उसके अधिकारों का हनन करना इसका समाधान नहीं हो सकता है।
इसके लिए उस क्षेत्र में या जहां से वह व्यक्ति रोजगार की तलाश में आया है वहां अवसरों और रोजगार का सृजन करना एक विकल्प है। तो दूसरी ओर जिस शहर में वह उम्मीदें लेकर आया है वहां भी रोजगार के अवसर और अन्य सुविधाऐं बढ़ाने से क्षेत्र का विकास होगा तो दूसरी ओर इससे कई तरह की समस्याओं का हल होगा।
'लव गडकरी'