क्यों है सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा का विधान
क्यों है सर्वप्रथम गणेशजी की पूजा का विधान
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हिन्दू धर्म में किसी भी सुबह कार्य को करने से पहले गणेश जी की पूजा करना आवश्यक मन गया है क्योंकि उन्हें विघ्नहर्ता व् ऋद्धि -सीधी का स्वामी कहा जाता है. इनके स्मरण, ध्यान, जप, आराधना से कामनाओ की पूर्ति होती है व् विघ्नों का विनाश होता है. वे अति शीग्र प्रसन्न होने वाले बुद्दि के अधिष्ठाता और साक्षात् प्रणवरूप है. गणेश का अर्थ है – गणों का ईश अर्थात गणों का स्वामी. किसी पूजा आराधना, अनुष्ठान व् कार्य में गणेश जी के गण कोई विघ्न – बाधा न पहुंचाए, इसलिए सर्वप्रथम गणेश पूजन कर उनकी कृपा प्राप्त होती है.

प्रत्येक शुभकार्य के पूर्व “श्री गणेशाय नमः ” का उच्चारण कर यह मंत्र बोल जाता है :

वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ

निर्विघ्नं कुरुमे देव सर्वकार्येषु सर्वदा 

अर्थात “विशाल आकार और टेढ़ी सूंढ़ वाले करोडो सूर्यो के सामान ते वाले हे देव (गणेश जी) , समस्त कार्यो को सदा विघ्नरहित पूर्ण (सम्पन्न) करे |
वेदो में भी गणेश जी की महत्ता व् उनके विघ्नहर्ता सवरूप की ब्रह्मरूप में स्तुति व् आवाहन करते हुए कहा गया है की –

गणानं त्वा गणपति हवामहे कवी काबिनामु पश्र्वस्म्म  

ज्येष्ठराजम ब्रम्णस्पत आ नः शरण्वन्नतीभी सीद सादनं 

अर्थात तुम देवगणो के प्रभु होने से गणपति हो, ज्ञानियों में श्रेष्ठ हो, उत्कृष्ठ ऋतिवलो में श्रेष्ठ हो, तुम शिव के ज्येष्ठ पुत्र हो, अतः हम आदर से तुम्हारा आव्हान करते है . हे ब्रह्मणसप्त गणेश, तुम अपने समस्त शक्तियों के साथ इस आसान पर आओ .

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