शैक्षणिक संस्थानों का राजनीतिक प्रयोग क्यों!
शैक्षणिक संस्थानों का राजनीतिक प्रयोग क्यों!
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इन दिनों भारत की राजनीति अगल ही तरह से चल रही है. इस राजनीति में कहीं भी विकासवादी पैमाना नहीं है. भ्रष्टाचार की बात होती है तो न तो विपक्ष सत्तापक्ष पर लगाए आरोपों में उसे अधिक दिन तक उलझाता है और न ही सत्तापक्ष भ्रष्टाचार के मसले पर हो रही जांच के किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है. मगर भारत में सांप्रदायिकता, राष्ट्रवाद और जातिवादी राजनीति जमकर खेली जा रही है।

दरअसल यह राजनीति ऐसी है जिसमें बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक वर्ग दोनों के बीच राजनीतिकतौर पर वैमनस्य फैलाया जा रहा है. यह राजनीति राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर के साथ अब महाविद्यालय और विश्वविद्यालय स्तर तक खेली जा रही है. इस राजनीति में भारत के उन छात्रों को काम में लिया जा रहा है जो कि वैचारिक और शैक्षणिकतौर पर अपना विकास करने आए हैं।

इन विद्यार्थियों के हाथ में पुस्तकें और पेन थमाने की बजाय राजनीतिक मोर्चे और ध्वज थमाए जा रहे हैं, जिस तरह से हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में दलित छात्र रोहित वेमुला की आत्महत्या के मसले को भुना लिया गया, उसी तरह से जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में देशविरोधी नारेबाजी को लेकर प्रदर्शन किए गए और अब तक इस पर राजनीति गर्मा रही है।

तो अब एनआईआईटी जैसे उच्च तकनीकी शिक्षा संस्थान में विद्यार्थियों के बीच क्रिकेट मैच के प्रसारण और राष्ट्रध्वज के मसले पर राजनीति हो रही है,  यही नहीं अब तो विद्यार्थी शिक्षा संस्थानों में खुलेआम रेप जैसे शब्दों का उपयोग करने लगे हैं. टेलिविजन चैनल पर राजनीतिक प्रदर्शन करते हुए उन्हें यह कहने में भी हिचक नहीं है कि विरोधी उनके लिए कहते हैं कि इन लड़कियों का रेप कर दिया जाए तो ये चुप बैठ जाऐंगी।

आखिर इस तरह की निम्न स्तर की राजनीति क्यों की जा रही है। देश का ध्यान असल मसलों से भटकाने के लिए और छात्रों को उद्वेलित करने के लिए इस तरह की राजनीति की जा रही है, यह विचार का विषय है। दरअसल वे विद्यार्थी जो कि शैक्षणिक परिदृश्य में ज्ञान ग्रहण करने आते हैं उनके बीच राजनीति की जाती है. यह क्यों किया जाता है?

शैक्षणिक परिसरों को राजनीति से दूर रखा जाना बेहद आवश्यक है. इस तरह की राजनीति किया जाना देश के लिए जितना घातक है उतना ही राजनेताओं के लिए भी पतन का निर्माण करने वाला है. जनता यह समझने लगी है कि राजनेता इस तरह की गर्माहट से अपनी राजनीतिक रोटियां सेक रहे हैं. अब मांग उठने लगी है कि राजनीति से इन अकादमिक परिसरों को दूर रखा जाना चाहिए। 

'लव गडकरी'

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