मंत्रीजी ! क्यों बिना पिये ही जुबां पर नियंत्रण खो देते हैं ?
मंत्रीजी ! क्यों बिना पिये ही जुबां पर नियंत्रण खो देते हैं ?
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(क्या चैन की लूट और आबरू की लूट बराबर है ?)

मध्यप्रदेश के वयोवृद्ध गृह-मंत्री बाबूलाल गौर ने शनिवार को फिर एक विवादास्पद बयान दिया; जबकि वे इंदौर में पत्रकारों से बात कर रहे थे । मंत्रीजी को किसी स्त्री के साथ चैन लूटने की घटना और उसकी आबरू लूटने की घटना समान ही नजर आती है । उन्हें लगता है कि कोई भी भारतीय महिला अपने साथ बलात्कार की रिपोर्ट उसी तरह कर सकती है; जैसे कि चैन लूटने की रिपोर्ट की जा सकती है ।

यह तो ठीक है कि महिलाओं को अपने साथ होने वाले ऐसे घृणित अपराध के खिलाफ पुलिस के पास शिकायत करना चाहिये; किन्तु, भारतीय समाज में ऐसा कहना तो आसान है; किसी भी महिला के लिए ऐसा करना बहुत कठिन और हिम्मत का काम है । यह बात जब सभी समझते हैं, तो उम्र के अंतिम पड़ाव में चल रहे हमारे मंत्री क्यों नहीं समझते ? अभी भी समाज का एक बड़ा वर्ग, बलात्कारी से अधिक बलात्कार पीड़िता को हेय दृष्टि या हिकारत से देखता है यदि पीड़िता अविवाहित है, तो उसकी शादी पर बड़ा-सा प्रश्न-चिह्न लग जाता है और यदि विवाहित है, तो उसका दाम्पत्य जीवन खतरे में आ जाता है या जीवन की सुख-शांति नष्ट हो जाती है ।

उसी प्रैस-कॉन्फ्रेंस में गौर साहब ने यह भी कहा, “शराब पीना गलत नहीं है, पीकर नियंत्रण खो देना गलत है” । गौर साहब का विवादित बयान देने का लंबा इतिहास रहा है; यानि वे अक्सर ऐसे बयान देते ही रहते है । यानि वे बिना पिये भी अपनी जुबान पर नियंत्रण खोते रहते हैं । अब ऐसा व्यक्ति यह कहे कि पीने के बाद भी नियंत्रण नहीं खोना चाहिये । यदि उनकी बात को सही मानकर सोचें तो फिर तो ‘नशे की’ या ‘नियंत्रण खोने की’ परिभाषाएँ ही बदलनी पड़ेगी।

इसके पहले भी बाबूलाल गौर ने कई बेतुके और विवादित बयान दिये हैं । एक बार तो वे रेप को सामाजिक अपराध बताने के साथ ही यह कहने लगे कि, ‘कई बार यह सही होता है, कई बार गलत’ । उनके अलावा भी हमारे कुछ अन्य विभिन्न पार्टियों के नेतागण भी कई बार बलात्कार को एक छोटा अपराध बताने की कोशिश करते हुए सुने गए हैं ।

प्रायः ऐसे लोग यह अज्ञान-भरा तर्क देते हैं कि, ‘बहुत बार बलात्कार आपसी सहमति से होता है’ । ऐसा कहने वाले लोग ‘बलात्कार’ शब्द का सही अर्थ ही नहीं समझते हैं । इसका संधि-विच्छेद ‘बलात + कार’ होता है और उसमें से बलात का अर्थ है, ‘बल-पूर्वक या जबर्दस्ती’ । इसलिए स्पष्ट है कि, जो आपसी सहमति से होता है, उसे बलात्कार नहीं कह सकते हैं; उसके लिए ‘संभोग’ शब्द है । तो क्या बुजुर्ग नेता समझाएँगे कि, किसी के शरीर का जबर्दस्ती से किया गया ‘भोग’ किस स्थिति में सही हो सकता है ? खासतौर पर ऐसे समाज में जहां ऐसी जबर्दस्ती हो जाने का मतलब ‘इज्जत लूट जाना’ माना जाता हो ?

इसलिए जब तक समाज का दृष्टिकोण व्यापक तौर पर नहीं बदलता है कि, बलात्कार होने का अर्थ पीड़िता कि ‘इज्जत लूट जाना’ नहीं है; बल्कि ‘बलात्कारी द्वारा अपनी ही इज्जत रसातल में पहुंचा देना’ है; तब तक स्त्रियों/ लड़कियों द्वारा खुद थाने जाकर FIR लिखाना अति-दुष्कर व दुर्लभ ही रहेगा ।

कुछ लोग कह रहे है कि मंत्रीजी ऐसे ‘लूज टंग’ वाले स्टेटमेंट्स खबरों में बने रहने के लिये देते हैं। इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता है; क्योंकि वे जिस तरह की निम्न-स्तरीय बातें कार रहे हैं; उनसे उनकी और पार्टी की छवि को कोई लाभ नहीं, बल्कि बहुत हानी हो रही है । इसलिये ऐसे बयानों में कोई चतुराई या रणनीति नहीं हो सकती । यदि है, तो वह आत्म-घाती है।                 

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