याकूब की फांसी पर नेताओं को आपत्ति क्यूं?
याकूब की फांसी पर नेताओं को आपत्ति क्यूं?
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1993 में देश की आर्थिक राजधानी में सिनसिलेवार बम धमाके करने वाला याकूब मेनन को शायद 30 जुलाई को फांसी दी जाएगी. हम इसे आतंकवादियों के खिलाफ देर से पर न्यायोचित सिलसिला मान सकते हैं. पर हाल ही के दिनों में उठी याकूब की फांसी की मांफी की मांगे अजीब प्रतीत होती हैं. मांगों को देखते हुए लगता है कि हमारे देश के नेता मुंबई बम धमाकों में मरे लोगों को भुलाकर बस अपना राजनीतिक स्वार्थ साधने में लगे हुए है और इन्हें ना तो किसी के दुःख दर्द से मतलब है न राष्ट्र हित से उन्हें कुछ भी लेना देना है उन्हें बस वोट बैंक से मतलब है और वो इसके लिए किसी भी हद तक जा सकते है. हाल ही में याकूब की फांसी का विरोध इसी का ताज़ा और पुख्ता प्रमाण है. इन्हें बस मजहब और जाती के नाम पर पर राजनीति करने से मतलब है.

हमारे नेता 12 मार्च 1993 का वो दिन कैसे भूल सकते है मुंबई बम धमाकों में 257 लोगों की जान गई थी और 700 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. इसमें जिन लोगों ने अपनो को खोया है या वो सैकड़ों लोग जो आज याकूब के उस घिनौने कृत्य के कारण आज भी अपाहिजों की जिंदगी जीने पर मजबूर हैं वो आज भी न्याय की उम्मीद लिए बैठे हैं. जब जब इनके घावों को आराम मिलता है तब तब कुछ राष्ट्रघाती इनके जख्मों को कुरेद कर और हरा कर देते हैं.

हालांकि अगर याकूब को फांसी होती भी है तो भी न्याय अधूरा ही रहेगा क्योकि धमाको के मुख्य आरोपी टाइगर मेनन, दाऊद इब्राहिं सहित कई आरोपी अभी ही हमारी पकड़ से दूर हैं पर फिर भी याकूब को फांसी देकर हम आतंकियों पर नकेल कसने की शुरुआत कर सकते हैं और आतंकियों को सजा देने के मामले में तेजी लाने का भी प्रयास कर सकते है.

हाल ही में हैदराबाद के सांसद ओवैसी या महाराष्ट्र सांसद अबू आजमी ने इस पूरे मामले को मजहब से जोड़कर देश की एकता और अखंडता को हानि पहुंचाने की नापाक कोशिश की है. इन्हें उस नरसंघार के बदले इस दुष्ट को फांसी देना कठोर सजा और अन्याय लग रहा है. हालांकि ऐसा नहीं है की अकेले उन्हें ही ये फैसला गलत लग रहा हो मेरा मानना है आधे से ज्यादा भारतीय इस फैसले से नाखुश ही होंगे क्योंकि ये सब याकूब को इतनी आसान मौत के खिलाफ होंगे क्योंकि मुंबई बम धमाकों में देश के कितने ही निर्दोष लोगों ने तड़प तड़प कर अपनी जान त्याग दी थी ऐसे में फांसी याकूब के गुनाहों के लिए फांसी बहुत छोटी सजा है.

सजा के मामले मे हिन्दू और मुसलमान का सवाल ही नहीं होना चाहिए, मैं पूछता हूँ कि बम धमाको में मरने वाले सभी लोग हिन्दू थे क्या ? हमारे नेताओं को आतंवादियों की सुरक्षा के बारे में सोचने की बजाए देश के नागरिकों के बारे में सोचना चाहिए. और ये मामला न्यायपालिका पर छोड़ देना चाहिए.

जय हिन्द जय भारत                                                                           पं. सुदर्शन शर्मा

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