आखिर कब तक जाती रहेगी प्रहरियों की जान
आखिर कब तक जाती रहेगी प्रहरियों की जान
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शहीदों की चिताओं पर हर बरस लगेंगे मेले। वतन पर मिटने वालों का बाकि यही निशां होगा। जी हां, शहीदों के सम्मान में यही पंक्तियां कही जा सकती हैं। देश की रक्षा के लिए अपना जीवन न्यौछावर कर देने वाले सैनिक अपनी जान हथेली पर रखकर अपना कार्य करते हैं। युद्ध में या सीमा की रक्षा करते समय तो दुश्मन हमले की ताक में रहता है लेकिन नियमित अभ्यास के दौरान भी इनकी जान जोखिम में होती है। हाल ही में सीमा सुरक्षा बल का एक विमान दुर्घटनाग्रस्त होने से 10 लोगों की जान चली गईं। इस दुर्घटना में सीमा सुरक्षा बल के जवान भी शहीद हो गए।

ऐसे में एक बार फिर सेना के उपकरणों की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे। हालांकि यह बात भी कम नहीं है कि रक्षा एवं विकास अनुसंधान संगठन ने कई वर्षों में प्रगति की है। इस दौरान डीआरडीओ ने उन्नत हेलिकाॅप्टर्स ध्रुव का निर्माण किया। जिसे विदेशों को भी सप्लाय किया गया। सेना नए विमानों की खरीद में भी लगी है लेकिन बीएसएफ का जो विमान दुर्घटनाग्रस्त हुआ। वह करीब 20 वर्ष पुराना बताया जाता है।

हालांकि सेना के अधिकारियों ने इस मामले में मीडिया से यह कहा है कि सेना में 20 वर्ष पुराना विमान पुराना नहीं माना जाता है इसके पार्टस को बदलकर इसे उपयोग किया जा सकता है। मगर इस दुर्घटना से एक बार फिर इस मामले में सवाल उठने लगे हैं। जिस तरह से सीमा पार आॅपरेशंस में सेना को अपेक्षाकृत अधिक केजुलीटी का सामना करना पड़ता है। उससे इस बात पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि आखिर पाकिस्तान की सीमा की ओर से होने वाली गोलीबारी का जवाब भारत कब तक अपने सैनिकों की शहादत देकर ही देता रहेगा। 

क्या इसका कोई स्थायी समाधान नहीं है। जिससे दोनों देशों की सीमा पर सीजफायर का उल्लंघन न हो। क्या मंत्रियों द्वारा सेना को और उन्नत बनाए जाने की दिशा में पहल नहीं की जा सकती। भारत नए हथियारों की खरीद तो कर रहा है लेकिन उसे पुराने उपकरणों और विमानों के रखरखाव पर भी विचार करना होगा। यही बात भारत की समुद्री सीमाओं की रक्षा करने वाली पनडुब्बियों और जहाजों पर भी लागू होती है। 

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