क्यों करते है हम भगवान, खुदा और गॉड का बंटवारा ?
क्यों करते है हम भगवान, खुदा और गॉड का बंटवारा ?
Share:

खबर है कि गुजरात के प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के मंदिर में अब हिन्दुओं को ही खुला प्रवेश मिलेगा और यदि गैर-हिन्दू महादेव का दर्शन करना चाहेंगे, तो उन्हें मंदिर प्रशासन से अनुमति लेना होगी । इसके पहले भी यूरोप के कुछ चर्चों से यह खबर आई थी कि वहाँ भी गैर-इसाइयों खासकर मुसलमानों को प्रवेश के लिए परमिशन लेना पड़ती है । मंदिर प्रशासन के इस कदम से मन में कई सवाल उठना स्वाभाविक है ।

ये अधिकतर सवाल केवल हिंदुओं पर ही लागू नहीं हैं, ये तो सभी धर्मो की विवेकहीन मान्यताओं का अहसास कराने वाले हैं । कितनी अजीब बात है कि सभी धर्म वाले कहते तो यही है कि उनका भगवान, खुदा या गॉड पूरे संसार या सृष्टि का निर्माता है, उसका रखवाला भी है और अंतिम फैसले करने वाला भी है । जिसका मतलब है कि मुसलमान और ईसाई तथा अन्य पचासों गैर-हिन्दू धर्मो के लोगों को, जो कि दुनिया के 87% लोग है उन्हें भी भगवान ने ही बनाया है और वह केवल 13% हिंदुओं का ही नहीं बल्कि सभी 100% इन्सानों का भी निष्पक्ष भाव से ध्यान रखता है । यही बात दुनिया के संख्या की दृष्टि से सबसे बड़े धर्म इसाईयत पर भी लागू होती है कि उनका गॉड केवल 30% इसाइयों से ही प्रेम नहीं करता है बल्कि वह शेष 70% गैर-इसाइयों से भी उतना ही प्रेम करता है । ऐसी बातों को मानते हुए और इनका प्रचार करते हुए भी क्यों ये सभी तरह-तरह के धर्मावलम्बी लोग अपने बनाए हुए ईश्वर के विभिन्न स्वरूपों को ही असली या सही बताने लगते हैं ? बस इन्हीं आधारहीन, काल्पनिक और बाहरी स्वरूपों के आधार पर वे उस एकमात्र सृष्टिकर्ता (या ईश्वर कह ले) का बंटवारा कर लेते हैं। अर्थात भगवान व मंदिर हिंदुओं के, खुदा व मस्जिद मुसलमानों के और गॉड व चर्च इसाइयों के हो जाते है । इन ऊपरी अंतरों को ही महत्व देकर सब भूल जाते है कि ‘वह’ तो सभी का है और सबको बराबरी से चाहता है ।

तो…… मंदिर वालों से सवाल है कि क्या उनका भगवान केवल हिंदुओं की ही पुजा-प्रार्थना स्वीकार करता है ? क्या बाबा सोमनाथ ने स्वयम गैर-हिंदुओं को आने से रोका है ? इन दिनो तो बहुत से हिंदुवादी बहुत मंसूबो से लोगों की घर-वापसी की कवायद कर रहे है, ऐसे में यदि कोई हिन्दू बनने से पहले मंदिर दर्शन करना चाहे तो, उन्हे क्यों रोकना चाहिए? यदि कोई खुदा, गॉड और भगवान को एक ही मानता है और मुसलमान घर में पैदा हुआ है, इसलिए उसका नाम, परिचय, आदि मुसलमान का है, तो उसे क्यों रोकना चाहिए ? यदि कोई हिन्दू धर्म मे विश्वास नहीं भी करे और एक जिज्ञासु या अध्येता की दृष्टि से, या कला-संस्कृति का अनुभव पाने के लिए ही मंदिर में आता है तो उसे क्यों रोका जाए ?

संभवतः इस निर्देश के पीछे यह डर है कि कोई गैर-हिन्दू मंदिर में आकर भगवान और उसके भक्तो को नुकसान पहुंचा सकता है । यदि इस आशंका में दम है तो फिर तो भारत के सभी करोड़ों मंदिरों में भी खतरा होगा, वहाँ भी यह पाबंदी क्यों नहीं हो ? और क्या सोमनाथ में जिस गैर-हिन्दू को कुछ अनिष्ट करना होगा वह धोती कुर्ते में, तिलक-छापा लगाकर हिन्दू नाम से नहीं घुसेगा ? इसलिए इस प्रकार का निर्देश निरर्थक ही है, बल्कि यह अनिष्ट करने का इरादा रखने वालों को उकसा रहा हैं, जिससे उन्हें इन व्यवस्थाओं के बावजूद भी कारस्तानी करने में अधिक उपलब्धि का अनुभव होगा ।

अब सबसे अधिक तीखा सवाल भी उठा ही दिया जाये, वह यह कि यदि हम यह आशंका रखते हैं कि कोई साधारण मनुष्य मंदिर मे घुसकर, भगवान को या मंदिर को नुकसान पहुंचा सकता है, तो इसका तो अर्थ है कि हम यह मन रहे है कि भगवान अपनी, अपने मंदिर की या भक्तों कि रक्षा करने में कोई रुचि नहीं रखता । मूर्ति, मंदिर और भक्तिभाव निरर्थक है ? चूंकि, भगवान को तो हम कमजोर मान नहीं सकते, इसलिए सवाल यही उठेगा कि आखिर हम अपने-अपने भगवान, खुदा या गॉड की रक्षा के लिए इतने उपाय और खर्च क्यों करते है ? उसे हमारे इन उपायों की जरूरत क्यों है ? वह सर्व-शक्तिमान यदि चाहेगा तभी तो मूर्ति, मंदिर, मस्जिद, चर्च या ग्रंथ साहिब को कोई नुकसान पहुंचेगा ? यदि फिर भी इन्हें नुकसान पहुँच रहा है; तब तो यही समझना पड़ेगा कि उसकी निगाह में भी इन प्रतिकों का कोई महत्व नहीं है, असल महत्वपूर्ण चीज तो कुछ और ही है, जिसे अब तक कोई धर्म नहीं समझा पाया ।

हरिप्रकाश ‘विसंत’

रिलेटेड टॉपिक्स
- Sponsored Advert -
मध्य प्रदेश जनसम्पर्क न्यूज़ फीड  

हिंदी न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_News.xml  

इंग्लिश न्यूज़ -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_EngNews.xml

फोटो -  https://mpinfo.org/RSSFeed/RSSFeed_Photo.xml

- Sponsored Advert -