आखिर क्यों हुआ विष्णु जी और तुलसी का विवाह? यहाँ जानिए कथा
आखिर क्यों हुआ विष्णु जी और तुलसी का विवाह? यहाँ जानिए कथा
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दिवाली से 10 दिन पश्चात् देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. देवउठनी एकादशी पर प्रभु श्री विष्णु योग निद्रा से जागते हैं. तत्पश्चात, उनका विवाह तुलसी के साथ कराया जाता है. इस वर्ष तुलसी विवाह 24 नवंबर 2023 को है. तुलसी विवाह कराने से विवाह, धन संबंधी हर समस्या का अंत होता है. ये तो सभी जानते हैं कि प्रभु श्री विष्णु मां लक्ष्मी के पति है, किन्तु फिर ऐसा क्या हुआ कि श्रीहरि विष्णु को तुलसी से विवाह करना पड़ा, जानें ये कथा.

तुलसी विवाह की कथा:-
पौराणिक कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में एक राक्षस था जिसका नाम जालंधर था. वह बहुत ही शक्तिशाली था, उसे हराना सरल न था. उसके शक्तिशाली होने की वजह थी, उसकी पत्नी वृंदा. जालंधर की पत्नी वृंदा पतिव्रता थी. उसके प्रभाव से जालंधर को कोई भी परास्त नहीं कर पाता था. जालंध का आतंक इस कद्र बढ़ा की देवतागण परेशान हो गए. जब कभी भी जालंधर युद्ध पर जाता था तो तुलसी प्रभु श्री विष्णु की पूजा करने लगती थी, विष्णु जी उसकी सारी मनोकामना पूरी करते. जालंधर से मुक्ति पाने के लिए देवतागण मिलकर प्रभु श्री विष्णु के पास पहुंचे तथा उन्हें सारी व्यथा सुनाई. तत्पश्चात, समाधान यह निकाला गया की क्यों न वृंदा के सतीत्व को ही नष्ट कर दिया जाए. पत्नी वृंदा की पतिव्रता धर्म को तोड़ने के लिए प्रभु श्री विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा को स्पर्श कर दिया. जिसकी वजह से वृंदा का पतिव्रत धर्म नष्ट हुआ तथा जालंधर की शक्ति क्षीण हो गई और युद्ध में शिव जी ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया.

वृंदा विष्णु जी की परम भक्त थी जब उसे ये पता चला कि स्वंय विष्णु जी ने उसके साथ छल किया है तो उसे गहरा आघात पहुंचा. वृंदा ने श्री प्रभु श्री विष्णु को श्राप दिया कि वे तुरंत पत्थर के बन जाएं. प्रभु श्री विष्णु ने देवी वृंदा का श्राप स्वीकार किया तथा वे एक पत्थर के रूप में आ गए. यह देखकर माता लक्ष्मी ने वृंदा से प्रार्थना की कि वह प्रभु श्री विष्णु को श्राप से मुक्त करें. वृंदा ने प्रभु श्री विष्णु को तो श्राप मुक्त कर दिया मगर, उसने खुद आत्मदाह कर लिया। जहां वृंदा भस्म हुई वहां पौधा उग गया, जिसे विष्णु जी ने तुलसी का नाम दिया तथा बोले कि शालिग्राम नाम से मेरा एक रूप इस पत्थर में हमेशा रहेगा. जिसकी पूजा तुलसी के साथ ही की जाएगी. यही कारण है कि प्रत्येक वर्ष देवउठनी एकादशी पर विष्णु जी के स्वरूप शालिग्राम जी और तुलसी का विवाह कराया जाता है.

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