चकाचौध से ढंकने के बाद भी भारत की ओर मुड़ रहा वेस्टर्न पर्सन
चकाचौध से ढंकने के बाद भी भारत की ओर मुड़ रहा वेस्टर्न पर्सन
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घनघोर अंधेरा, अंधेरे के साथ श्मशान में पसरा सन्नटा और जलती चिता से उठता कुछ धुंआ। लोगों के बीच एक भयावहता का आभास करवाता है। मगर इसी बीच दूर से सुनाई पड़ती है मंत्रोच्चारण की ध्वनि। काले वस्त्रों में बैठे कुछ तांत्रिक दिखलाई पड़ते हैं जो कि शव वेदियों के आसपास कुछ कर रहे होते हैं। यह तो हुई एक बात अब कुछ पांडालों के पास नज़र दौड़ाऐं तो कहीं तपती दोपहरी में कंडों के धुंए के बीच खुले आसमान के नीचे बैठे हैं कुछ साधु।

ऐसी धूप जिसमें चार कदम भी चलना आम आदमी के लिए एक मुश्किल काम नज़र आता है, उस धूप में सुबह से शाम तक बैठते हैं ये साधक तो वहीं पांडालों में विशेष स्थलों पर ध्यान, योग क्रिया और साधना करते हैं साधु संत। कठिन योग साधना के माध्यम से दीव्य शक्ति का साक्षात्कार करना और उसे पा लेना इनका उद्देश्य है। जिसके लिए ये पहाड़ों से उतरकर मध्यप्रदेश के धार्मिक पर्यटन नगर उज्जैन चले आए हैं।

इन साधकों को देखने कई लोग उमड़ रहे हैं। मगर ये अपने में ही रमे रहते हैं। इनकी साधना ही इनका दैनिक क्रम है। साधुओं और सन्यासियों को देखने के लिए केवल भारतीय ही नहीं उमड़ रहे हैं विदेशी भी बड़े पैमाने पर पहुंच रहे हैं। आधुनिक और भौतिकवादी भारत आज भी इन विदेशियों को आकर्षित कर रहा है। आखिर ऐसी क्या बात है भारत में और सिंहस्थ के इस आयोजन में।

भारत के लोग भी अब जींस, टी शर्ट पहनने लगे हैं। पबों में जाने लगे हैं, गर्मी लगती है तो कूलर और एसी का प्रयोग करने लगे हैं मगर घास और बांस से बनी कुटियाओं में रहना और गोबर से लीपी हुई धरती पर सुखासन में बैठकर भोजन करना इन्हें रास आ रहा है। दरअसल यह केवल हमारी धार्मिक और आध्यात्मिक सत्ता के कारण संभव हुआ है।

वह आध्यात्म जो मानव के भौतिकवादी होते हुए भी उसे उस दीव्य शक्ति के प्रति आकर्षित करती है जिसका अस्तित्व दुनिया के प्रारब्ध से भी पहले से रहा है। हमारा आध्यात्मिक जीवन शरीर को मन में बैठे ईश्वर को पुष्ट करने का साधन मानता है। जिसके कारण विदेशी आकर्षित हो रहे हैं। हालांकि अब कई बाबा ऐसे हो गए हैं जो शरीर पर सोना लाद रहे हैं, जो अपने साथ समर्थकों और सेवकों की बड़ी फौज रखते हैं जो महलनुमा पांडालों में रहते हैं जिनके परिसर में परिंदा तक उनकी अनुमति के बिना पर नहीं मार सकता।

जो महंगी एसयूवी कारों के बगैर कहीं आते - जाते नहीं हैं जो कि स्वयं भौतिकवादी नज़र आते हैं। मगर इसके बाद भी लोग उनके प्रति श्रद्धा से झुक जाते हैं। इसका कारण है भारत की आध्यात्मिक चेतना। वह चेतना जो उस शक्ति तक पहुंचने का मार्ग और साधन बताती है। भले ही हमें अपनी जड़ों से काटने का प्रयत्न कर दिया गया हो।

हम पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हों मगर आज भी हमारी आध्यात्मिक चेतना में वह दम है जिसके कारण पाश्चात्य जगत भारत की छोटी - छोटी गलियों में खींचा चला आता है। मगर एक बड़ा सवाल है कि पश्चिम तो हमारी आध्यात्मिक चेतना को समझ रहा है मगर हम हमारी इस दीव्य विरासत को कब समझेंगे। विदेशियों ने हमारी आध्यात्मिक चेतन्यता को काॅस्मिक एनर्जी का नाम दिया मगर हम अभी भी मान्यताओं में जी रहे हैं। इस दीव्य अनुभव को हम समझ नहीं रहे। जबकि भौतिकता के प्रभाव में ढंकी जा रही इस दुनिया में इसे समझने की महति जरूरत है। 

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