हम है कि मानते ही नही...
हम है कि मानते ही नही...
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अपने बचपने में मुझे पहले प्लास्टिक वाली साइकिल मिली। वो चलाना सीख गई और घरती पर पैर सही जगह पड़ने लगे तो फिर पापा से साइकिल की जिद्द की, पता चला इसके लिए अभी छोटी हूँ, तो घर पर पड़ी बड़े भाई की साइकिल लेकर निकल पड़ी। रॉड के नीचे से आधे पैर को फँसाकर न जाने कितने किलोमीटर नाप आते थे हम। रेस भी हो जाती थी। यह सभी के साथ जरुर हुआ होगा। पर अब आलम ये है कि देश के सर्वोच्च पद पर बैठे प्रधानमंत्री को लोगो से अपील करनी पड़ती है कि साइकिल चलाए।

तो क्यों न शुरुआत भी यही करें। दुनिया के शीर्ष राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री बड़े ही शान से साइकिल से ऑफिस जाते है। बिना किसी पब्लिक अनाउंसमेंट के। यूरोपीयन कंट्रीज में इसकी शुरुआत 50 साल पहले ही हो चुकी है। बेल्जियम व नीदरलैंड में पिछले पाँच दशकों से कार फ्री चे मनाया जा रहा है। की शहरों में ऑटो फ्री संडे, कार लेस संडे व इन टाउन विदाउट माइ कार यहाँ तक कि कार फ्री वीक मनाया जाता है। जो चीजें हमारे बचपने से हममें इंजेक्ट की जाती है, उसके लिए अचानक हमें स्पेशल कार फ्री डे जैसी चीजें क्यों बनानी पड़ रही है। इसका कारण है बढ़ता वाय़ु प्रदूषण, प्राकृतिक संपदाओं का खत्म होना और इन सबसे जुड़ी बीमारियाँ।

मैंने एक ऐसी कॉलोनी के बारे में पढ़ा है जहाँ रहने पर आपको कार पुलिंग करनी जरुरी है। आप अपनी पर्सनल कार यूज नहीं कर सकते है और यह काम एक रोटेशन में चलता है। जैसे इस हफ्ते में एक की कार से सब ऑफिस गए तो अगले वीक में दूसरे की कार से जाँएगे। इससे हमें अलग से कार फ्री डे नही मनानी पड़ेगी। पैदल चलना, पब्लिक ट्रांसपोर्ट और साइकिल का प्रयोग विकसित देशों में लाइफ स्टाइल का हिस्सा है और इसमे उन्हें शर्मिंदगी भी नही होती है। ब्रिटेन में ट्रेन के बाहर आपको लिखा हुआ मिलेगा कि पेट्स एण्ड साइकिल अलाउड इसका अर्थ है आप जिस शहर जा रहे है वहाँ जाकर भी आप अपनी सवारी का इस्तेमाल कर सकते है।

यह अब सिर्फ शौक भर ही नही है ब्लकि अब हमारी जरुरत है, स्वास्तय और पैसे दोनो बचाने के लिए। हम जिम में घंटो साइकलिंग कर सकते है पर रोड पर हमें शरम आती है। कार व बाइक कंपनियाँ अपने लुभावने विज्ञापनों से ग्राहक को फँसा ही लेती है। और नए व शौकिया लोग चल पड़ते है। जब दिल्ली में 2-4 घंटे कार रोककर हम 60 प्रतिशत तक कम कर सकते है तो फिर आधी तरह से भी कर लें तो कितना लाभ होगा और आने वाली पीढ़ी के लिए भी कुछ बचा पाएँगे।

कई देशों में अलग वे है जहाँ सिर्फ साइकिल ही चलती है। यह हमारे देश की दुर्यव्यवस्था है कि यहाँ ऐसी कोई व्यवस्था है नही और हम साइकिल चलाने तक की बात कर रहे है। इस हाल में साइकिल चली तो एक्सीडेंट के नए आँकड़े आँएगे।  

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