उत्तराखंड में महिलाओ को नहीं मिल रहे सैनिटरी नैपकिन
उत्तराखंड में महिलाओ को नहीं मिल रहे सैनिटरी नैपकिन
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प्रदेश में पिछले 66 दिनों से लॉकडाउन है, ऐसे में सरकार जरूरतमंदों को भोजन से लेकर राशन तक उपलब्ध करा रही है लेकिन आधी आबादी की एक ऐसी जरूरत भी है, जिस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसे कहना और सहना दोनों ही मुश्किल है। लॉकडाउन पीरियड के चलते दूरदराज के क्षेत्र की महिलाओं और बेटियों को सैनिटरी नैपकिन नहीं मिल पा रहे हैं।ऐसे में उन्हें ‘पैड मैन’ की तलाश है, जो उनकी जरूरत की ओर भी ध्यान दे। हालांकि चंपावत में ‘चेली बेटी सेवा’ के तहत फोन करने पर विभाग सैनेटरी पैड की होम डिलीवरी कर रहा है। लेकिन ये सुविधा सिर्फ नगर क्षेत्र के लिए है।

कोरोना काल में जारी लॉकडाउन में महिलाओं को अपनी मांग के अनुसार सैनिटरी नैपकिन नहीं मिल पा रहे हैं।इसके अलावा कहीं पसंद का ब्रांड नहीं मिल पा रहा है तो कहीं साइज को लेकर समस्या है। साकार जन सेवा समिति से जुड़ीं कंचन कश्यप इसके लिए सीधे सरकार को दोष देती हैं, उनका कहना है कि हॉस्टल या पीजी में फंसी लड़कियों को दिक्कतें हो रही हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं या फिर एनजीओ की मदद से सैनिटरी नैपकिन बंटवाए जाने चाहिए।साथ ही उनका सुझाव है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कैंप लगाकर नैपकिन बंटवाने चाहिए। पीलीकोठी निवासी मेडिकल कॉलेज की छात्रा अक्षिता कश्यप का भी कहना है कि बाजार में पसंद के अनुसार ब्रांड और साइज नहीं मिल पा रहे हैं। मजबूरी में अन्य ब्रांड का इस्तेमाल करना पड़ रहा है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें की  आसपास की छोटी दुकानों में तो ये भी नहीं मिल पा रहे हैं। पुनर्नवा महिला समिति की सचिव शांति जीना, आकृति सोसायटी की अध्यक्ष कुसुम दिगारी का भी कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम प्रधानों से मिलकर मुफ्त सैनिटरी नैपकिन बंटवाए जाने चाहिए।सेल्फ रिलायंस इनिशिएटिव की अध्यक्ष तनुजा जोशी जरूरतमंदों को राशन उपलब्ध कराती हैं। उन्होंने राशन किट में नैपकिन को भी शामिल किया है। हर राशन किट में वह एक पैकेट सैनिटरी नैपकिन का भी रखती हैं। वह अभी तक 3000 पैकेट बांट चुकी हैं। उन्होंने कहा कि नैपकिन नहीं मिलने पर महिलाएं अन्य घरेलू तरीके अपनाती हैं, जिससे समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

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