उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां को साक्षात् ‘बाबा’ ने दिया था दर्शन, रहस्य है बहुत ही खास
उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां को साक्षात् ‘बाबा’ ने दिया था दर्शन, रहस्य है बहुत ही खास
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देश के महान व्यक्ति बिस्मिल्‍लाह खां का नाम आते ही शहनाई की मधुर धुन याद आ जाती है तथा शहनाई का नाम लेते ही बिस्मिल्लाह खां साहब की छवि उभर उठती है। वे शहनाई का पर्याय थे। बीते लगभग सात दशक में जब भी शहनाई गूंजी, बिस्मिल्लाह खां ही याद आए। वे आगे भी याद आएंगे एवं हमेशा याद आएंगे, क्योंकि बिस्मिल्लाह खां जैसे फनकार सदियों में होते हैं। उनमें बनारसी ठसक तथा मस्‍ती पूरी तरह भरी थी। मुस्लिम समुदाय में पैदा हुए बिस्मिल्‍लाह खां मंदिर में रियाज करते थे तथा सरस्‍वती मां की आराधना करते थे। आज इस महान फनकार का जन्‍मदिवस है। आइये इस अवसर पर आपको उनके मंदिर में रियाज का एक वाकया बताते हैं, जब ‘बाबा’ ने उन्‍हें दर्शन दिया था।

उस्‍ताद बिस्मिल्‍लाह खां का जन्‍म 21 मार्च को बिहार के डुमरांव में एक पारंपरिक मुस्लिम परिवार में हुआ था। हालांकि, उनके जन्‍म के साल के बारे में मतभेद है। कुछ व्यक्तियों का मानना है कि उनका जन्‍म 1913 में हुआ था तथा कुछ 1916 मानते हैं। उनका नाम कमरुद्दीन खान था। वे ईद मनाने मामू के घर बनारस गए थे तथा उसी के पश्चात् बनारस उनकी कर्मस्थली बन गई। उनके मामू एवं गुरु अली बख्श साहब बालाजी मंदिर में शहनाई बजाते थे तथा वहीं रियाज भी करते थे। यहीं पर उन्‍होंने बिस्मिल्‍लाह खां को शहनाई सिखानी आरम्भ की थी। बिस्मिल्‍लाह खां अपने एक इंट्रेस्टिंग सपने के बारे में बताते थे, जो इसी मंदिर में उनके रियाज करने से संबंधित है। एक पुस्तक में उनकी जुबानी ये किस्सा है। इसके अनुसार, उनके मामू मंदिर में रियाज के लिए बोलते थे तथा बताया था कि यदि यहां कुछ हो, तो किसी को बताना मत।

बिस्मिल्लाह साहब के अनुसार, ‘एक रात मुझे कुछ महक आई। महक बढ़ती गई। मैं आंख बंद करके रियाज कर रहा था। मेरी आंख खुली, तो देखा हाथ में कमंडल लेकर ‘बाबा’ खड़े हैं। दरवाजा भीतर से बंद था, तो किसी के कमरे में आने का अर्थ ही नहीं था। मैं रुक गया। उन्होंने (बाबा) कहा बेटा बजाओ, किन्तु मैं पसीना-पसीना था। वे हंसे, बोले बहुत बजाओ… खूब मौज करो एवं गायब हो गए। मुझे लगा कि कोई फकीर अंदर आया होगा, किन्तु आसपास सब खाली था।’ बिस्मिल्लाह साहब घर गए। उन्‍होंने अपने मामू को इसके बारे में कहा। उनके अनुसार, मामू समझ गए थे कि क्या हुआ है। यह किस्सा बताने के पश्चात् बिस्मिल्‍लाह साहब को थप्पड़ मिला, क्योंकि मामू ने कुछ भी होने पर किसी को बताने से इंकार किया था। बता दें कि बनारस में ‘बाबा’ विश्‍वनाथ जी को बोलते हैं।

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