प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। यहां उनका भव्य स्वागत हुआ। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र को नई रेल सेवा की सौगात तो दी ही दी मगर अभी तक मानसिक और शारीरीक विकलांग कहे जाने वाले वर्ग को एक नया नाम दिव्यांग दिया। इसके बाद भी मोदी वापस जाओ के नारे लगे। तो दूसरी ओर एक बार फिर पीएम मोदी का यह दौरा विवादों से घिर गया।
पिछली बार जब मोदी आए थे तो बाढ़ ने उनका रास्ता रोक दिया था। इस बार प्रधानमंत्री मोदी गए तो दिव्यांगों से भरी बस पलट गई। इस हादसे में 40 से ज़्यादा लोगों को गंभीर चोटे पहुंची हैं। ऐसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर विरोधी सक्रिया हो गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दबंग वर्सेस दलित की राजनीति का सामना भी करना पड़ा। लखनऊ जाने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विरोध हुआ।
जिस विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में वे पहुंचे थे वहां उनसे वापस जाने की मांग की गई आखिर मोदी का विरोध एक बार फिर हुआ। हां इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हैदराबाद के केंद्रीय विश्वविद्यालय में दलित छात्र द्वारा की गई आत्महत्या के विषय को छूकर स्वयं अपने लिए समस्या मोल ले ली। इस मसले पर मोदी ने जिस तरह से राजनीति को अलग रखे जाने और दलित छात्र के परिजन के प्रति अपनी संवेदनाओं को लेकर चर्चा की उनका विरोध हुआ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दंबग और दलित की राजनीति के आरोपों का सामना करना पड़ा। दरअसल पहले भी दलितों को जिंदा जलाए जाने के मसले पर सरकार ने अपना पल्ला झाड़ लिया था। मगर इस बार दलित छात्र की आत्महत्या ने सरकार पर करारा वार किया। विरोधी राजनीति से प्रेरित थे या नहीं यह तो संभवतः बाद में पता चल सकेगा।
मगर विरोधियों के स्वर ने केंद्र सरकार और भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर दी। पहले ही दलितों को जिंदा जलाए जाने पर सरकार पर विरोधियों ने वार किए। दरअसल सरकार अपने एक मंत्री की बयानबाजी के चलते सवालों के घेरे में आ गई। दलितों की तुलना कुत्ते से किए जाने की बात का विरोध करते हुए विरोधियों ने इस मसले को पहले भी गर्माया अब दलित विद्यार्थी की आत्महत्या ने इस चिंगारी को हवा देने का कार्य किया।
एक बार फिर असहिष्णुता का मसला सामने रखते हुए लोकप्रिय साहित्यकार अशोक वाजपेयी द्वारा अपनी उपाधि वापस किए जाने से विरोध के सुर तेज़ हो गए। हालांकि इस मामले में सत्ता पक्ष द्वारा सोची - समझी साजिश किए जाने का आरोप लगाया जा रहा है। मगर केंद्र सरकार के लिए इसे खतरे की घंटी कहा जा रहा है। असहिष्णुता के मसले को दलित छात्र की आत्महत्या से फिर से हवा दी जा सकती है। इससे एक नया राजनीतिक घटनाक्रम सामने आने की पूरी संभावना है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहले तो इस तरह के मसलों से बोलने से बच रहे थे लेकिन अब इस मामले में बोलने पर प्रधानमंत्री का विरोध किया जा रहा है। हालांकि सरकार के विरोध पर विकास का पलड़ा अभी भी भारी है। इसे टिकाए रखने के लिए सरकार को कई प्रयास करने होंगे। जनता अधिक वर्षों तक इंतज़ार नहीं कर सकती है। जनता को महंगाई, विकास, शिक्षा आदि मसलों से अधिक सरोकार है।
महंगाई को काबू में न कर पाने को लेकर भी सरकार की उपेक्षा हो रही है तो दूसरी ओर दबंग - दलित, संप्रदायवाद सरकार के लिए परेशानी का कारण बना हुआ है। अप्रत्यक्ष तौर पर यह भी कहा जा सकता है कि जनता अब यह समझने लगी है कि दलित वर्सेस दबंग और मसलों को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिशों में सरकार और भाजपा अलग - अलग नहीं है। ऐसे में वाइब्रेंट गुजरात का नारा देने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए मुश्किलें बढ़ने की संभावना है।
'रीटा राय'