परिवार की जिम्मेदारी कंधों पर होने के बाद भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े राजेंद्र बाबू
परिवार की जिम्मेदारी कंधों पर होने के बाद भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े राजेंद्र बाबू
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इंदौर: भारत के पुराने नेताओं की बात ही अलग थी। उन्होंने देश को गढ़ने का कार्य किया। ऐसे ही नेताओं में से एक थे हमारे प्रथम राष्ट्रपति डाॅ. राजेंद्र प्रसाद। जी हां। डाॅ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा अपनी आत्मकथा में यह लिखा गया है कि गोपाल कृष्ण गोखले से मिलने के बाद आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए वे बेचैन हो गए थे। उस दौर में स्वतंत्रता प्राप्ति ही एकमात्र लक्ष्य था। परिवार की जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर थी। 15 से 20 दिन तक बहुत विचार करने के बाद बड़े भाई महेंद्र प्रसाद की पत्नी राजवंशी देवी को भोजपुरी में पत्र लिखकर उनके द्वारा परिवार के सदस्यों की अनुमति मांगी गई थी। 

उन्होंने अनुमति मांगी थी कि वे देशसेवा करना चाहते हैं और इसके लिए उन्हें परिवार के सदस्यों की अनुमति की आवश्यकता है। जब उनका पत्र परिवार के सदस्यों को मिला तो उनके बड़े भाई रोने लगे। उन्होंने विचार किया कि आखिर वे राजेेंद्र बाबू को क्या जवाब देंगे। दरअसल राजेंद्र बाबू का जन्म 3 दिसंबर को हुआ वे वर्ष 1984 को बिहार के भोजपुर क्षेत्र में जीरादेई नामक गांव में जन्मे थे।

अब यह क्षेत्र सिवान जिले में आता है। 13 वर्ष की आयु में राजेंद्र प्रसाद का विवाह राजवंशी देवी से हुआ। हालांकि राजेंद्र बाबू स्कूल में पढ़ रहे थे। राष्ट्रपति भवन में अंग्रेजियत का बोलबाला था। राजवंशी देवी द्वारा यह कहा गया था कि देश छोड़ो तो छोड़ो मगर अपना वेश मत छोड़ो। अपनी संस्कृति कायम रखो। तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद गांधीजी के प्रमुख शिष्यों में से एक थे। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

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