मॉडर्न होने में अच्छाइयाँ भी हैं
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भाग -1 पुराने जमाने की बड़ी बुराइयाँ   

आमतौर पर बुजुर्ग लोग जब आधुनिक समय की बात करते हैं और युवाओं के मॉडर्न बन जाने की बात करते हैं; तो वे आधुनिकता की बुराइयों की ही बात करते हैं और आज के जमाने की निंदा करते हैं । यहाँ तक कि कई युवा भी ऐसे ही नकारात्मक नजरिये से ही आज के समय को देखते हैं । पर क्या यह सोच सही जानकारी व तथ्यों पर आधारित है ? क्या आधुनिकता में बस बुराइयाँ ही है ? क्या हम एक बिगड़ते जा रहे समाज में रह रहे हैं ? इसके सही उत्तर के लिए हमें पुराने और नए जमाने का एक सामान्य तुलनात्मक खाका खींचना होगा ।  

पुराना जमाना यानि कौनसा समय:  सबसे पहले तो हम यह स्पष्ट कर लें पुराने जमाने से यहाँ हमारा आशय कौनसे समय से है ? चार युगों की लंबी चर्चा अभी यहाँ करने में अधिक सर नहीं है । फिलहाल तो बस 200-250 वर्ष के इतिहास को ध्यान में रखकर तुलना करना ही उपयोगी रहेगा । अर्थात ‘पुराने जमाने’ से हमारा आशय 19-वी और 20-वी सदी के समय से है । और ‘आधुनिक समय’ से तो स्पष्ट ही है कि हम आज-कल के जमाने के बारे में बात कर रहे हैं ।    

संक्षिप्तता कि दृष्टि से बेहतर है कि मैं शुरू में ही अपना निष्कर्ष बता दूँ । मेरी स्पष्ट और पक्के आधारों के साथ दृढ़ मान्यता है कि पहले के जमाने की या संस्कृति की हर बात अच्छी नहीं थी । करीब 100-200 वर्ष पहले के भारत के बारे में यदि हम प्रामाणिक जानकारी लें तो मालूम होगा कि वहाँ ढेर सारी बुराइयाँ थी और वे आज की बुराइयों से कई गुना बड़ी थी ।

जातिगत उंच-नीच व भेद-भाव अपने चरम रूप में था । देश के बहु-संख्यक इन्सानों को इंसान होने का सम्मान मिलना तो दूर कई बार पशुओं से भी निम्न स्तर का व्यवहार मिलता था । उन्हें शिक्षित होने, अपना व्यवसाय चुनने, देव-दर्शन और धार्मिक आयोजनों में भाग लेने के अधिकार नहीं थे । यहाँ तक कि वे अपनी पसंद के कपड़े पहनने, भोजन करने व इलाज पाने से भी वंचित थे ।

प्रायः सभी जतियों में यानि उच्च जतियों में भी स्त्रियॉं को दोयम दर्जा दिया गया था । वे हमेशा किसी न किसी पुरुष के या पुरुषों के अधीन मनी जाती थी । विधवाओं कि स्थिति सबसे दयनीय थी और ‘सती’ जैसी अमानवीय प्रथाएँ भी थी । इसी दृष्टिकोण और दहेज जैसे रिवाजों के चलते ही आज तक लोग बेटियाँ नहीं चाहते हैं और बेटियों को मर दिया जाता था या मरने दिया जाता था । आज सोनोग्राफी जैसे आधुनिक साधनों ने बेटा है या बेटी यह पता करना आसान बना दिया है तो उसी पुराने जमाने के गलत दृष्टिकोण के कारण लोग बेटियों को गर्भ में ही मारने लगे हैं ।  

अन्य बुराइयों को अब जरा संक्षेप में ही उल्लेख कर लें । अशिक्षा (5% से भी कम शिक्षित लोग), गरीबी (आज से दोगुनी से भी अधिक), गंदगी (स्वच्छ आदतों का अभाव, जिनका अभी भी प्रभाव दिखता है), अंध-विश्वास, कुरीतियाँ, सामंतवाद और तरह-तरह के अभाव जैसे चिकित्सा-सुविधा, आवागमन के साधन, सूचना - संचार के साधन और इन सबके प्रभाव से स्वाभाविक है कि ‘जीवन कि गुणवत्ता’ की बात तो सोचना भी मुश्किल था ।

....और अच्छाइयाँ ? खैर, हो सकता है आपको लगे कि यहाँ भी एक-पक्षीय नजरिया ही रखा गया है । परंतु, यदि खुले दिल से और बिना पूर्वाग्रह के सोचेंगे तो आप भी यह स्वीकार कारेंगे कि ये बुराइयाँ इतनी बड़ी हैं कि यदि उस जमाने की कई अच्छाइयाँ गिना भी दी जाए तो उनका कुल प्रभाव भी इनके सामने बहुत फीका ही रहेगा । फिर भी हम यह जरूर स्वीकारते हैं कि ‘परिवार संस्था’ कि मजबूती, पड़ोसी के साथ प्रेम, अतिथि-सत्कार और कहीं-कहीं ग्राम-समाज की एकता (किन्तु इस पर जातिगत भेद-भाव भरी था ); ये कुछ अच्छाइयाँ उस जमाने में थी; जिन्हें खूब बढ़ा-चढ़ा कर गिनाया जाता है ।

                                                                    --- हरिप्रकाश ‘विसंत’                                     

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