सांप्रदायिकता के शोले से प्रभावित होती विकासवाद की रफ्तार
सांप्रदायिकता के शोले से प्रभावित होती विकासवाद की रफ्तार
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देश की राजनीति में इन दिनों कुछ अलग ही रंग देखने को मिल रहे हैं। एक ओर तो साध्वी प्राची और अन्य नेताओं के माध्यम से हिंदूत्व का राग अलापा जा रहा है तो दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में सांप्रदायिकता को हवा न देने की बात कर रहे हैं। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विभिन्न नेताओं को सांप्रदायिक बयानबाजी करने से रोका है। भाजपा के सांसद, पदाधिकारी और नेता लगातार हिंदूत्व के मसले पर बयानबाजी कर रहे हैं। इससे देश की राजनीति में फिर से गर्माहट आ रही है। हालांकि आम जनमानस भगवे की इस राजनीति को समझ नहीं पा रहा है लेकिन हवा का रूख धीरे - धीरे सांप्रदायिकता की ओर जा रहा है। यूं तो विकासवादी सोच और विकास की अवधारणा लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन  सत्ता में आया । इसी के साथ जनमानस खुश हो उठा कि अब उनकी सरकार साकार रूप ले रही है। हालांकि इसी बीच हिंदूवादी नेता हिंदूत्व का मुद्दा उठाते रहे और उन्होंने सत्ता से अलग हटकर संगठन की बात की। इससे जनमानस में हिंदूत्व का एजेंडा छाया रहा।

हाल ही में राज्यसभा सांसद विनय कटियार ने रामजन्म भूमि को लेकर बयान दिया और मंदिर निर्माण की बात को हवा दी। इससे देश की राजनीति में एक बार फिर सांप्रदायिकता की बयार चलती नज़र आई। जिस लोकतंत्र में सभी ने इस बात के साथ संविधान को अंगीकार किया था कि भारत में सर्वधर्मों को समान मान्यता दी जाएगी वहां धर्मांतरण के साथ घर वापसी जैसे मुद्दे आज भी रहरहकर उठ रहे हैं।

एक ओर साध्वी प्राची के माध्यम से समय समय  पर हिंदूओं को अधिक संतान उत्पन्न करने को लेकर बात कही जा रही है तो दूसरी ओर सरकार मुस्लिमों को एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ मे लैपटाॅप देने की बात कह रही है। मगर इसी के बीच धीरे से गौमांस भक्षण करने वालों को पाकिस्तान चले जाने की बात कहकर सरकार एक तीर से दो निशाने लगाने की तैयारी में दिखाई देती है। कभी श्रीमद्भगवद् गीता को अचानक पाठ्यक्रम में शामिल करने की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर मदरसों के आधुनिकीकरण की बात सरकार द्वारा की जाती रही है। हालांकि श्रीमद्भगद् गीता के उपदेश किसी को आत्मसात करने की सलाह गलत नहीं कही जा सकती मगर इसे मूलतः अनिवार्य करना भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के लिए कुछ मुश्किल है। 

राजग सरकार ने बीते 1 वर्ष में जमकर कार्य किए इन कार्यों में विकासवादी और नई सोच भी नज़र आती है लेकिन इसके बीच संप्रदायवाद की चिंगारी फिर से सुलगती नज़र आ रही है। हालांकि अब इसकी संभावनाऐं बेहद कम हैं। अब इस राष्ट्र का मुस्लिम शिक्षित हो रहा है यही नहीं वह जागरूक भी हो रहा है दूसरी ओर हिंदूओं को भी विकास का नारा अच्छा लगने लगा है। उन्हें समझ आ गया है कि संप्रदायवाद की चिंगारी केवल राजनीतिक रोटी सेंकने के काम ही आती है। ऐसा समय जब आम आदमी महंगाई से काफी त्रस्त है, उसे विकासीय परियोजनाओं के वास्तविकता के धरातल पर आने की उम्मीद है। ऐसे में संप्रदायवाद का शोर गाहे - बगाहे उठ रहा है। देश के भविष्य के लिए यह कुछ चिंता की बात नज़र आती है। 

हालांकि वर्तमान राजग सरकार ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार की तुलना में लोगों को अधिक प्रभावित किया है। लोग अच्छे वर्तमान के साथ उन्नत भविष्य के लिए आशान्वित हुए हैं। विदेशी धरती पर भारत का डंका बजा है और विदेशियों को भी लगने लगा है कि भारत में निवेश करना फायदे का सौदा रहेगा लेकिन यदि संप्रदायवाद की चिंगारी को हवा दी गई और देश का माहौल खराब होता है तो फिर विकास के पंख लगाकर उड़ने की हमारी गति प्रभावित होगी।

ऐसे में देश में आने वाला प्रत्यक्ष विदेशी निवेश कम हो सकता है और हमारे शेयर बाजार भी निचले पायदान पर पहुंच सकते हैं। जिससे एक बार फिर हम विकास के पैमाने पर पीछे खिसक सकते हैं। इन सभी के बीच कविवर डाॅ. हरिवंश राय बच्चन की उक्त पंक्तियां यहां प्रासंगिक नज़र आती हैं, बैर कराते मंदिर - मस्जि़द मेल कराती मधुशाला, मुसलमान औ हिंदू हैं, एक मगर उनका प्याला।

जी हां, वर्तमान में देश को विकास के पथ पर अग्रसर होने की आवश्यकता है। यदि विकासीय योजनाऐं वास्तविकता के धरातल पर उतरेंगी तो हम विश्व में एक महाशक्ति बनकर सामने आऐंगे लेकिन यदि हम संप्रदायवाद और धार्मिक कट्टरता की बात करते रहे तो विकास की यह बात बेदह पीछे छूट सकती है।

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