कपडा उद्द्योगो में रोजगार के नाम पर हो रहा 1 लाख लड़कियों और महिलाओं का शोषण
कपडा उद्द्योगो में रोजगार के नाम पर हो रहा 1 लाख लड़कियों और महिलाओं का शोषण
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इरोड : दक्षिण भारत के नारियल के हरे-भरे बगीचे से घिरे अपने 2 कमरे के घर में रहने वाली गृहिणी कविता ने इस क्षेत्र के कपड़ा उद्योग को दशकों से फलते-फूलते देखा है। यह गरीब, निचली जाति की उनकी तरह की महिलाओं के कड़े परिश्रम का नतीजा है। बेहतर जिंदगी देने का वादा एजेंट लेकर कई सालो से तमिलनाडु के ग्रामीण क्षेत्रो के गरीबो के आसपास मंडराते है और हजारों रूई कताई मिलों में काम करने के लिए भारी तादात में लड़कियों और महिलाओं को लेकर जाते है। रूई कताई मिलें उस टेक्सटाइल एवं कपड़ा निर्माण उद्योग का हिस्सा है जिसको भारत का सबसे बड़ा रोजगार देने वाला उद्योग कहा जाता है।

इन महिलाओं की दयनीय स्थिति भारत जैसे देश की उभरती आर्थिक महाशक्ति के लिए बेहद शर्मनाक है। तमिलनाडु के इरोड जिला में पहले काम करने वाले मजदूरो ने शोषण और बंधुआ मजदूरी के एक ऐसे सिस्टम का पर्दाफाश किया जो भारत के काफी समय से स्थापित कपड़ा उद्योग के माथे पर कलंक के समान है। 23 साल की कविता ने जो द्स्तान बयां की वह बेहद हैरान करने वाली है। मैंने सभी महिलाओं से कहा कि मैं मिलों में अब काम नहीं करूंगी। मुझे पता है कि एजेंट क्या वादा करते हैं और सच्चाई क्या होती है।

वादे और हकीकत में जमीन-आसमान का फर्क है।' कविता ने आपबीती बताते हुए कहा, करीब एक साल से मुझे हॉस्टल और मिल के परिसर से बाहर निकलने नहीं दिया जाता था। वे मुझसे दो-दो शिफ्टों में काम करवाते थे। वहां से निकलने के लिए मुझे झूठ बोलना पड़ा, तब जाकर ही मुझे वहां से छुटकारा मिल सका। मैंने कहा कि मेरी चाची की मौत हो गई है और मुझे उनके अंतिम संस्कार में भाग लेने जाना है। उसके बाद से मैं वहां फिर कभी नहीं लौटी।' 1990 के दशक में जब भारतीय अर्थव्यवस्था के उदय की शुरुआत हुई थी, उस समय तमिलनाडु में ये मिलें फल-फूल रही थीं। इन मिलों द्वारा शादी स्कीम का झांसा दिया जाता था। इसी स्कीम की शिकार हजारों लड़कियों और महिलाओं में से एक कविता भी थीं जो 13 साल की उम्र में वहां काम करने लगी थीं।

काम करवाने से पहले बेहतर योजनाओ से लुभाया जाता है। तरह तरह के वादे किये जाते है। उनसे मिल परिसर में स्थित हॉस्टल में रहने, साल में 2 बार छुट्टी, बाहर घुमाने ले जाने जैसे पिकनिक और मंदिरों में घूमने का लालच दिया जाता था। उनसे स्वच्छ और अच्छे काम करने और रहने की सुविधा का वादा किया जाता था। लेकिन, पहले काम करने वाले लोग और सिविल सोसायटी ग्रुपों जैसे फ्रीडम फंड, ऐंटि स्लेवरी इंटरनैशनल और मल्टिनैशनल कंपनी पर रिसर्च करने वाले सेंटरों की स्टडीज से कुछ और ही हकीकत सामने आई।

इनके अनुसार महिलाओं को बंद हास्टलों में रखा जाता है। उनसे कई घंटो काम करवाया जाता है और पैसे देने के बदले उल्टा उनका शारीरिक शोषण किया जाता है। अध्यन से ज्ञात हुआ की इस प्रकार 1,00,000 लड़कियों और महिलाओं शारीरिक शोषण का शिकार बनाया जाता है।

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