जन्मदिन : अपने कार्यों से वेदों के ज्ञान को किया सार्थक
जन्मदिन : अपने कार्यों से वेदों के ज्ञान को किया सार्थक
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जिसने अपने समय में ही मूर्ति पूजा, जाति प्रथा और विधवाओं की दयनीय हालत को लेकर कार्य किया। वे दयानंद सरस्वती आर्य समाज के संस्थापक थे। हिंदूओं में वैदिक परंपरा को प्रमुख स्थान दिलवाने के उनके अभियान में वे वैदिक विद्या और संस्कृत भाषा के विद्वान भी थे। वे पहले ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने स्वराज्य की लड़ाई प्रारंभ की। स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म गुजरात में 12 फरवरी को 1824 में हुआ था। वे आर्य समाज के प्रवर्तक और बड़े सुधारवादी सन्यासी थे। केशवचंद्र सेन ब्रह्मसमाज के प्रचार में लगे हुए थे। 

हालांकि उनका नाम मूलशंकर रखा गया था। दरअसल वे मूल नक्षत्र में जन्मे थे। इनके पिता अंबाशंकर थे। बचपन में ही इन्हें वेद का ज्ञान मिल गया था। रूद्री भी इन्हें कंठस्थ याद थी। हालांकि एक बार उन्होंने चूहिया को शिवलिंग से नैवेद्य खाते हुए देखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ फिर उनके मन में मूर्ति पूजा को लेकर अधिक विश्वास नहीं रहा। उन्होंने ब्रह्म की एकता को मान लिया।

आचार्य दयानंद सरस्वती का नाम शुद्ध चैतन्य पड़ गया। इसके बाद वे सन्यासियों की 4 थी श्रेणी में दीक्षित हुए। दयानंद ने उनके द्वारा शिक्षा ग्रहण की। मथुरा के स्वामी विरजानंद से उन्होंने वेद की शिक्षा प्राप्त की। जब उनके गुरू ने आदेश दिया कि संसार में अपने ज्ञान को फैलाओ तो वे हरिद्वार पहुंचे। उन्होंने पाखण्डखण्डिनी पताका फहराई और मूर्ति पूजा का विरोध किया। 1863 से 1875 तक स्वामी जी ने देश में अपने मच का प्रचार - प्रसार किया। इसके बाद उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की।

वर्ष 1875 में मुंबई में उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की। हालांकि स्वामी जी ने सांख्यदर्शन को अपना लिया। 1863 से 1875 में स्वामी जी देश का भ्रमण करने पहुंचे। स्वामीजी ने वेदों का प्रचार भी किया। मगर इसके बाद उन्होंने समाज में कई तरह की बातें देखीं। जिसमें उन्होंने नारी शिक्षा, विधवा - विवाह को प्रोत्साहन दिया। स्वामी जी ने हिंदू धर्म से बड़े पैमाने पर होने वाले परिवर्तन को रोका।

सत्यार्थ प्रकाश की रचना कर उन्होंने समाज को एक अलग दर्शन प्रदान किया। उनके द्वारा किए गए समाज सुधार के कार्यों के कारण लोग उनके विरोधी होने लगे। ऐसे में 1833 में उन्हें दूध में कांच पीसकर दे दिए गए। जिसके चलते उनका निधन हो गया। स्वामी दयानंद सरस्वती का निधन वेश्या के कारण होना माना जाता है।

स्वामी जी की शिक्षाओं से प्रभावित होकर वेश्या को राजा ने त्याग दिया था। इसके बाद वेश्या ने स्वामी जी के रसोइये को अपने साथ मिला लिया और स्वामी जी को दूध में कुछ मिलाकर दे दिया। स्वामीजी का आर्य समाज आज भी समाज में ज्ञान फैला रहा है। 

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