नईदिल्ली। भारत में रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों को लेकर सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय 13 अक्टूबर को सुनवाई करेगा। रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थियों ने उन्हें म्यांमार भेजने के केंद्र सरकार के रूख का विरोध किया। उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की। मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर व न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ सुनवाई कर रही है। न्यायाधीशों का कहना था कि, इसमें किसी एक पक्ष को सुन लेना गलत होगा।
यह मामला भावना प्रधान न हो, बल्कि कानूनी पहलूओं को ध्यान में रखा जाना जरूरी है। इस मामले में विभिन्न पक्षों को सुना जाना आवश्यक है। यह एक मानवीय पहलू है। इस कारण इसकी सुनवाई जल्दबाजी में नहीं हो सकती है। मिली जानकारी के अनुसार, केंद्र सरकार उक्त याचिका का विरोध कर रही है। उनका कहना था कि, इस तरह का निर्णय न्यायालय में नहीं हो सका है।
न्यायालय ने कहा है कि, दोनों पक्षों को वैश्विक संधियों से जुड़े साक्ष्यों को प्रस्तुत करना होगा और, विभिन्न दस्तावेज भी प्रस्तुत करने होंगे। इस मामले में फली एस. नरीमन ने केंद्र सरकार के रूख का विरोध करते हुए कहा कि, संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत न्यायालय को इस याचिका पर सुनवाई करने का अधिकार है। यह अनुच्छेद व्यक्तिगत अधिकारों की गारंटी देता है।
हालांकि केंद्र सरकार अपनी ओर से न्यायालय में दायर किए गए हलफनामे में कहा कि, रोहिंग्या मुसलमान शरणार्थी असंगत तरह से भारत में आए हैं। कई बार यह कहा गया है कि, इन लोगों में से कुछ का संबंध पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी, आईएसआई और आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट आफ इराक से हो सकता है। ऐसे में ये राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिंताजनक हैं। इन लोगों को म्यांमार भेजा जाना चाहिए।
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