रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी करने के मामले में स्वामी प्रसाद मौर्य को 'सुप्रीम' राहत, हाई कोर्ट ने दिए थे मुकदमा चलाने के आदेश
रामचरितमानस पर विवादित टिप्पणी करने के मामले में स्वामी प्रसाद मौर्य को 'सुप्रीम' राहत, हाई कोर्ट ने दिए थे मुकदमा चलाने के आदेश
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लखनऊ : सुप्रीम कोर्ट ने तुलसीदास रचित रामचरितमानस के संबंध में उनकी कथित विवादास्पद टिप्पणी को लेकर समाजवादी पार्टी नेता स्वामी प्रसाद मौर्य के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर अस्थायी रोक लगा दी है। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर मामले में जवाब मांगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा तुलसीदास के 'रामचरितमानस' के खिलाफ टिप्पणी के मामले से संबंधित प्रतापगढ़ जिला अदालत में कानूनी कार्यवाही को रद्द करने की मांग करने वाली याचिका खारिज होने के बाद मौर्य ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया। नवंबर 2023 में उच्च न्यायालय ने उनके खिलाफ प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करने के लिए पर्याप्त आधार पाया।

यह मामला मौर्य के कथित बयान के इर्द-गिर्द घूमता है कि रामचरितमानस की विशिष्ट "चौपाई" समाज के एक महत्वपूर्ण वर्ग का अपमान करती है और इसलिए उस पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। उन्होंने कथित तौर पर दावा किया कि तुलसीदास द्वारा लिखित पवित्र हिंदू पाठ, रामचरितमानस, दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्गों को उनकी जातियों का नाम देकर और उन्हें "शूद्र" कहकर अपमानित करता है। उन्होंने रामचरितमानस की दो चौपाइयों को महिलाओं, दलितों, आदिवासियों और पिछड़े वर्ग के लोगों के खिलाफ बताते हुए आपत्ति जताई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आरोपपत्र और अन्य दस्तावेजों की समीक्षा करने के बाद फैसला सुनाया कि मौर्य को निचली अदालत में मुकदमा चलाना चाहिए, जिसमें सार्वजनिक प्रतिनिधियों के ऐसे कार्यों से परहेज करने के महत्व पर जोर दिया गया जो सांप्रदायिक सद्भाव को बाधित कर सकते हैं।

मौर्य के खिलाफ एफआईआर में धारा 153-ए (धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना), 295-ए (जानबूझकर और दुर्भावनापूर्ण कृत्य, अपमान करके किसी भी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को अपमानित करने का इरादा) के तहत आरोप शामिल हैं। साथ ही धर्म या धार्मिक विश्वास को ठेस पहुँचाना, किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के जानबूझकर इरादे से शब्दों आदि का उच्चारण करना और  दो वर्गों के बीच शत्रुता, घृणा या दुर्भावना पैदा करने या बढ़ावा देने वाले बयान देने के आरोप भी शामिल हैं। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि मौर्य की टिप्पणियों ने भारत भर के नेताओं को रामचरितमानस की प्रतियां जलाने के लिए सर्वसम्मति से सहमत होने के लिए प्रेरित किया, जिससे गुस्से और अशांति का माहौल पैदा हो गया।

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