'यूनिवर्सिटी के नाम पर जमीन लेकर बना दी मस्जिद..', अब SC ने आज़म खान के जौहर ट्रस्ट पर दिया फैसला
'यूनिवर्सिटी के नाम पर जमीन लेकर बना दी मस्जिद..', अब SC ने आज़म खान के जौहर ट्रस्ट पर दिया फैसला
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लखनऊ: उत्तर प्रदेश के रामपुर स्थित मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी को आवंटित की गई भूमि वापस लेने पर सर्वोच्च न्यायालय ने सोमवार (18 अप्रैल 2022) को रोक लगा दी। मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने यह अंतरिम आदेश दिया है। बता दें कि, समाजवादी पार्टी (सपा) के वरिष्ठ नेता आजम खान इस ट्रस्ट के अध्यक्ष है। याचिका में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी गई थी, जिसमें यूनिवर्सिटी को आवंटित भूमि वापस लेने की प्रशासनिक प्रक्रिया में दखल देने से इनकार कर दिया गया था।

दरअसल, आज़म खान के ट्रस्ट पर यूनिवर्सिटी के लिए आवंटित जमीन पर मस्जिद बनाने व अन्य अनधिकृत निर्माण करने का इल्जाम है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की बेंच ने अब इस मामले में अं​तरिम आदेश पारित किया है। मामले की अगली सुनवाई अगस्त में की जाएगी। बता दें कि, इससे पहले इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने 12.5 एकड़ छोड़ कर शेष भूमि पर नियंत्रण लेने के यूपी सरकार के फैसले में हस्तक्षेप करने से साफ़ मना कर दिया था।

क्या कहा था हाई कोर्ट ने :-

बता दें कि, यूनिवर्सिटी निर्माण के लिए लगभग 471 एकड़ भूमि अधिग्रहित की गई थी। जिला प्रशासन ने कहा था कि सिर्फ 12.50 एकड़ जमीन ही ट्रस्ट के अधिकार में रहेगी। आज़म खान के जौहर ट्रस्ट ने इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की। लेकिन हाई कोर्ट ने फैसला दिया कि मौलाना मोहम्मद अली जौहर ट्रस्ट रामपुर द्वारा अधिग्रहित 12.50 एकड़ जमीन के अतिरिक्त भूमि को राज्य में निहित करने के ADM वित्त का आदेश सही था। अदालत ने SDM की रिपोर्ट और ADM के आदेश की वैधता को चुनौती देने वाली ट्रस्ट की याचिका ठुकरा दी थी। 

उच्च न्यायालय ने कहा था कि अनुसूचित जाति (SC) की भूमि बिना डीएम की इजाजत के अवैध रूप से ली गई। अधिग्रहण शर्तों का उल्लंघन कर शैक्षिक कार्य के लिए निर्माण की जगह मस्जिद का निर्माण कराया गया। ग्राम सभा की सार्वजनिक उपयोग की, चक रोड जमीन व नदी किनारे की सरकारी भूमि ले ली गई। किसानों से जबरदस्ती बैनामा करा लिया गया, जिसमें 26 किसानों ने पूर्व मंत्री एवं ट्रस्ट के अध्यक्ष आजम खान के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। यूनिवर्सिटी का निर्माण पाँच साल में किया जाना था, जिसकी वार्षिक रिपोर्ट नहीं दी गई। कानूनी उपबंधों व शर्तों का उल्लंघन करने के आधार पर जमीन राज्य में निहित करने के आदेश पर दखल नहीं दे सकते।

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