नशाखोरी के खिलाफ एक साथ ज़ोर लगाना होगा!
नशाखोरी के खिलाफ एक साथ ज़ोर लगाना होगा!
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नशाखोरी के खिलाफ चाहिये-वैश्विक संकल्प. आज फिर एक बार मौका है; यह याद करने का कि विभिन्न प्रकार की नशाखोरी किस तरह से मानव सभ्यता को खोखला कर रही है और उस पर छाये हुए सबसे बड़े खतरे ‘आतंकवाद’ को भी बढ़ावा दे रही है। चूंकि आज ‘इंटरनेशनल डे अगेन्स्ट ड्रूग अब्यूज एंड इलिसीट ट्राफिकिंग’ हैं; तो इस संदर्भ में गंभीरता से विचार करना ही चाहिए। इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव बान की मून ने अपने संदेश में इसी बात को रेखांकित किया है कि नशे की प्रवृत्ति, ड्रग्स का दुरुपयोग, नशे का गैर-कानूनी परिवहन एवं आतंकवाद किस तरह से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। उन्होने बताया कि, केवल अफ़गानी अफीम से बनने वाले विभिन्न नशीले पदार्थों का ही 61 बिलीयन डॉलर का गैर-कानूनी बाज़ार है। इसकी अवैध कमाई का बहुत बड़ा हिस्सा आतंकी और अपराधी तत्वों के पास जा रहा है।

इसलिये नशा एक ओर तो हमारी कार्यक्षम मानवीय शक्ति को कमजोर कर रहा है; दूसरी ओर वह मानवता के दुश्मनों यानि आतंकियों और अपराधियों को रसद मिलने का जरिया बना हुआ है। यही नहीं, नशा हमारे व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक सभी संदर्भों में कई प्रकार की समस्याएँ पैदा कर रहा है या अन्य समस्याओं को बढ़ा रहा है। इस सबके बावजूद ऐसा लगता है कि हम अब भी उसकी चुनौतियों के प्रति पर्याप्त रूप से गंभीर नहीं हैं। हमारे नेताओं, बड़े-से बड़े नेताओं, चाहे वे बान कि मून हों, बराक ओबामा हो, नरेंद्र मोदी हों या नवाज़ शरीफ़; उनके भाषणों में तो गंभीरता दिखाई देती है, किन्तु वह कार्यरूप में या व्यवहार में नहीं आ रही है। और नेताओं की छोड़े, हमारे अपने जमीनी स्तर पर देखेँ, तो यहाँ तो स्थिति शायद उनसे भी बुरी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल के शुरू में ही अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में इस चुनौती पर चिंता जाहिर करते हुए, लोगों से सुझाव मांगे थे । सुना है उन्हें करीब आठ हजार पत्र इस बारे में मिले; पर फिर क्या हुआ ?

उस पर सरकार की कोई भी सक्रियता तो नहीं दिख रही। न तो यह सुना है सुझावो का विश्लेषण-चयन हो रहा है; न कोई कड़ी-योजना बनाने के लिए कमेटी जैसी टीम बनी है; न कोई समय-सीमा सहित कदमों का ब्यौरा मिला है। क्या अभी तक की कवायद केवल भाषण-बाजी के लिये थी ? यहाँ मैं बता दूँ कि यह टिप्पणी लिखने का हक मैं अपना इसलिए समझता हूँ, क्योंकि मैंने 17 सुझावों का एक पत्र पीएमओ को भेजा था; जिसमें केवल उन्हीं कदमों के सुझाव थे जो कि सरकार के स्तर पर उठाए जाना चाहिए। फिर, उसके बाद समाज व व्यक्ति के स्तर पर किए जाने योग्य उपायों के बारे में भी सोचा था और वे विचार एक मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुए थे।

यानि आज की स्थिति में मैं एक 40-सूत्री प्राथमिक कार्य-योजना तो स्वयं बनाकर दे सकता हूँ। यहाँ अब केवल थोड़ी सी हर व्यक्ति की भूमिका की बात कर लें; तो संक्षेप में तो संदेश बिलकुल सीधा है कि हर व्यक्ति को हर प्रकार के नशे से स्वयं तो दूर रहना ही चाहिये; अपने-अपने परिवेश में भी ऐसी प्रवृत्तियों पर रोक लगाने की हर-संभव कोशिश करना चाहिये। इस बारे में यह समझना व ध्यान रखना जरूर आवश्यक है कि जो कोई नशे से मुक्त होना चाहता है; या जिस किसीको आप नशे से छुटकारा दिलाना चाहते हैं; उसके बारे में यह सबसे पहले यह स्पष्ट जान लेना जरूरी है कि फिलहाल नशे की आदत किस स्टेज में है।

अर्थात वह मात्र शौक है, आत्म-नियंत्रित आदत है या फिर एक लत- एक बीमारी बन चुकी है। यह तभी गंभीर समस्या होती है; जबकि लत बन चुकी हो और जानकारों के मुताबिक नशे की लत एक बीमारी की तरह है। इसमें व्यक्ति स्वयं चाहकर भी नशा किये बिना नहीं रह पाता है और तब नशा छोडना या छुड़ाना बहुत कठिन काम होता है। ऐसे में परिवार वालों या नशा छुड़ाने के इच्छुक लोगों को व्यक्ति पर कोई कठोरता या जबर्दस्ती करने के बजाय विशेषज्ञों की सलाह लेकर सुनियोजित तरीके से ही नशा छोडने या छुड़ाने के प्रयास करना चाहिये।

बहरहाल ! आप सभी को नशीले पदार्थों व उनके अवैध व्यापार के विरोध का यह दिन मुबारक !

आईये, हम अपने व्यक्तिगत स्तर पर तो नशे के विरोध में हर-संभव प्रयासों का संकल्प लें !

हरिप्रकाश 'विसन्त'

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