जब "घमंडी" दादा ने टीम में डाली जीत की आदत
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भारतीय टीम के सबसे सफल कप्तानों में से एक सौरव गांगुली आज अपना 43वां जन्मदिन मना रहे है. सौरव गांगुली को भारतीय टीम में दिए गए अपने अमूल्य योगदान के लिए जाना जाता है. सौरव गांगुली को लोग प्यार से दादा कहते है. दादा के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने भारतीय टीम में जीतने की आदत डाली. यह गांगुली की काबिलियत थी कि कभी शांत और नम्र समझी जाने वाली भारतीय टीम मैदान में शेरों की तरह दहाड़ने लगी. सौरव गांगुली का जन्म 08 जुलाई, 1972 को कोलकाता के एक रईस परिवार में हुआ था. सौरभ के पिता चंडीदास गांगुली कोलकाता के अमीर लोगों में शुमार थे. उस समय उनकी कंपनी एशिया की तीसरी सबसे बड़ी कंपनी थी. सौरव गांगुली को 'महाराज' यानी 'प्रिंस' उपनाम उनके मां-बाप ने दिया था. इसके बाद गांगुली को ज्‍योफ्री बॉयकॉट ने 'द प्रिंस ऑफ कोलकाता' नाम दिया.

सौरभ को बचपन से ही फुटबॉल खेलने का जूनून था, लेकिन अपने बड़े भाई स्नेहाशिष गांगुली के कहने पर उन्होंने क्रिकेट खेलना शुरु किया. दादा का स्वभाव शुरू से ही शाही रहा है. एक बार उन्हें अपने स्कूल की टीम में 12वें खिलाड़ी के तौर पर रखा गया था तो उन्होंने खिलाड़ियों को पिच पर पानी पिलाने से मना कर दिया था. दादा ने अपने अंतराष्ट्रीय कॅरियर की शुरुआत 1992 में की, जब उन्हें वेस्टइंडीज दौरे के लिए भारतीय क्रिकेट टीम में चुना गया. हालाँकि इस दौरे पर उन्हें सिर्फ एक मैच में खेलने के मौका मिला, जिसमे उन्होंने तीन रन बनाए, लेकिन अपने शाही अंदाज के कारण कई लोगो ने उन्हें घमंडी भी कहा. वरिष्ट लोगों ने यहां तक कहा कि यदि सौरभ कोलकाता के संपन्न परिवार से नहीं होते तो वह टीम में आ भी नहीं पाते.

हालाँकि दादा को चार साल बाद 1996 में इंग्लैंड दौरे के लिए फिर से टीम में चुना गया, जहाँ उन्होंने अपने टेस्ट कॅरियर का आगाज शानदार तरीके से करते हुए 131 रनों की पारी खेली और अगले टेस्ट में भी शतकीय पारी खेलकर अपना हुनर साबित कर दिया. इसके साथ ही वह अपने दोनों शुरुआती टेस्ट मैचों में सेंचुरी ठोकने वाले दुनियां के तीसरे बल्लेबाज बने. धीरे-धीरे दादा टीम में अपनी जगह मजबूत करते गए और 2000 में उन्हें भारतीय टीम की कमान सौंपी गई. सौरव ऐसे खिलाडी थे, जो जीत के लिए कुछ भी कर सकते थे. कई बार अपने खिलाड़ियों पर गुस्सा दिखाने और विपक्षी खिलाड़ियों से तू-तू मै-मैं करने की वजह से कई बार सौरभ की आलोचना भी हुई है. शायद ही कोई भारतीय क्रिकेट प्रेमी 2002 की नेटवेस्ट सीरीज को भूला हो जिसमें जीत के बाद सौरभ गांगुली ने खुशी के मारे अपनी टी-शर्ट निकाल कर लहरा दी थी. अपनी कप्तानी में 2003 में भारतीय टीम को विश्वकप के फाइनल तक ले जाने वाले सौरभ की यह सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है.

हालाँकि 2007 में अच्छे प्रदर्शन के बाद भी सौरभ को बार-बार टीम से अंदर बाहर किया जाने लगा. कोच ग्रेग चैपल के साथ अनबन इसका मुख्य कारण था. हालाँकि गांगुली ने वापस टीम में वापसी की और 2008 में क्रिकेट को अलविदा कह दिया. गांगुली ने अपने शानदार कॅरियर में 113 टेस्ट मैचों में 7212 रन बनाएं जिसमे 16 शतक शामिल है, वहीँ 311 वनडे में 11,363 रन और 22 शतक बनाए है.

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