कुछ डर तो सिखाये भी जाते है
कुछ डर तो सिखाये भी जाते है
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हम डरना कब सीखते है, ये हमें पता ही नहीं चलता. जब हम छोटे होते है, तो इस एहसास से अनजाने होते है. है किन्तु माता-पिता या किसी अपने से खोने से डर ही जाते है. डर हमें असहाय बना देता है. डर दिमाग में स्थान बना जाता है. अगर डर पर काबू न किये जाए तो यह समय के साथ बढ़ता जाता है. जब ऐसा होने लगता है तो हर काम डर के साथ ही संचालित होने लगते है. किन्तु यदि हम अपने मन पर काबू करे, तो डर से निजात पाया जा सकता है. इसके लिए ऐसी चीजे करे जिससे आपको डर लगता है.

जब आप इस पर सफलता पा लेंगे तब आपको महसूस होगा कि आप अपने आप में एक नया अवतार महसूस करेंगे. मगर इसके लिए प्रयास आपको खुद करने होंगे. डर से निकलने के सारी कोशिशे नाकामयाब हो जाती है. कहा जाता है कि कुछ लोगो ने डर व्यक्तित्व का स्थायी हिस्सा होता है. कुछ डर सहज होते है जैसे दर्द से डर. कुछ डर तो हमे सिखाये भी जाते है, जैसे बचपन में भूत आ जायेगा ये कह कर हमे डरना सिखाया जाता है.

इस तरह डर हम कुछ लोगो से, कुछ जगहों पर या कुछ परिस्थितियों से सीखते है. यह पुराने बुरे अनुभवों के कारण भी होता है. जैसे कि किसी को पानी से डर लगता है. हो सकता है उसके पीछे कोई बुरा अनुभव हो. कुछ घटनाए भूलने के बाद भी अवचेतन में जगह बना लेती है. कुछ डर समाज सिखा देता है. कुछ डर काल्पनिक होते हैं. दिमाग कई ऐसी चीजों की कल्पना करता रहता है, जिनका कहीं कोई अस्तित्व नहीं है और कई बार इनसे डरता भी रहता है. किन्तु पक्का निश्चय कर इस पर काबू किया जाता है.

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