समाज में बढ़ते अपराध का क्या है समाधान
समाज में बढ़ते अपराध का क्या है समाधान
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इन दिनों देशभर में हत्या, चोरी, लूट, बलात्कार, आत्महत्या जैसी घटनाऐं अधिक होने लगी हैं. आम आदमी अपराध की इन घटनाओं से सहम गया है. हालात ये है कि सुबह के समय आंख खुलते ही व्यक्ति के सामने हत्या, बलात्कार, आत्महत्या जैसी घटनाऐं ही होती हैं. जब व्यक्ति रात्रि में सोता है तो भी अपराध से जुड़े समाचार उसके दिमाग में समाज की अलग ही इमेज कौंध देते हैं. आखिर क्यों हो रहे हैं ये अपराध और इनसे निजात पाने का क्या है समाधान।

इस पर क्या विचार हुआ है. बहरहाल इन अपराधों ने भारतीय समाज की कमर ही तोड़कर रख दी है. वह भारत जो कभी छोटे-बड़ों के आदर के साथ जीता था. वह भारत जहां की नदियों के किनारों पर शेर और अन्य पशु एक साथ पानी पिया करते थे वहां पर लोग अपनों के ही रक्त के प्यासे हो रहे हैं। आखिर यह सब किसलिए. दरअसल हमारी जनसंख्या बढ़ने के ही साथ साधन और संसाधन सीमित रह गए हैं।

हर व्यक्ति अपने लिए बेहतर चाहता है. यही नहीं जिस देश में मान्यता थी कि साधु इतना दीजिए जामे कुटुम समाए , मैं भी भूखा न रहूं साधु भी भूखा न जाए वहां पर अब लोग अपने पेट की भूख को शांत करने में लगे हुए हैं. दूसरी ओर लोगों में सहनशीलता, त्याग, करूणा, दया, लोगों को सुनने की क्षमता, समझने की क्षमता और बड़ों का आदर समाप्त होता जा रहा है. ऐसे में लोग अपना संतुलन खो रहे हैं। 

उनके मन में महत्वाकांक्षा बढ़ने लगी है. सामाजिक ताना-बाना ही प्रभावित हो रहा है. समाज में लोग अपने लाभ के लिए समाज में बने नियमों को तोड़ते हैं लेकिन जब समाज में किसी और के लिए उसी तरह की परिस्थितियां निर्मित होती हैं तो वे उसका विरोध कर उसे नीचा दिखाने लगते हैं।

इस तरह की भावनाओं और समाज में अपने लिए अधिक प्राप्त करने की महत्वाकांक्षा के चलते अपराध बढ़ने लगे हैं. हाल ही में पत्रकार पूजा तिवारी की आत्महत्या में भी यही बात नज़र आती है. हालांकि यह पूरा मसला जांच के दायरे में है लेकिन उनके कथित सुसाईड नोट में इस बात का उल्लेख मिलता है, जिसमें उन्होंने दूसरों के लिए यह लिखा कि कभी पत्रकार मत बनना, जो लड़की एक राज्य के बढ़ते शहर से मीडिया सिटी में इसलिए प्रवेश करती है क्योंकि उसे पत्रकार बनना होता है लेकिन बाद में वह आत्महत्या करने से पहले यह लिखती है कि पत्रकार मत बनना. क्या दर्शाता है।

समाज में समरसता के साथ ही अतिमहत्वाकांक्षाओं को तिलांजलि देना और सभी के साथ सौहार्द से रहना इन सभी समस्याओं के समाधान को दर्शाता है. दूसरी ओर व्यक्ति अपराध हो जाने के बाद अपराधी से घृणा करते हैं जबकि घटित अपराध से लोगों को दूरी रखनी चाहिए और अपराधी के प्रति संवेदनाऐं रखते हुए उसके सुधार के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए। 

'लव गडकरी' 

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