अमृत बूंदों के स्पर्श का उत्सव है सिंहस्थ
अमृत बूंदों के स्पर्श का उत्सव है सिंहस्थ
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यह ऐसा समय है जब विमानतल, रेलवे स्टेशन, बस स्टेंड से सारे रास्ते मध्यप्रदेश के धार्मिक नगर उज्जैन की ओर जा रहे हैं। मध्यप्रदेश के धार्मिक पर्यटन नगर उज्जैन में आस्था का मेला जो लगा है। करोड़ों - करोड़ श्रद्धालु चले जा रहे हैं। बस चले जा रहे हैं। उन्हें इंतज़ार है तो बस संतों के आशीर्वाद का और उन अमृत बूंदों के स्पर्श का जो पौराणिककाल में धरती पर आ गिरी थीं। जी हां, हम बात कर रहे हैं सिंहस्थ 2016 की वह सिंहस्थ जो उज्जयिनी को प्रति बारह वर्ष में संपन्न बना देता है।

वह सिंहस्थ जो इस नगर को आधुनिक दौर में भी एक प्रमुख नगर बनाता है। वह सिंहस्थ जो दर्शाता है कि उज्जयिनी ही वह प्रतिकल्पा है जिसे हर कल्प के अंत में भी भगवान द्वारा संरक्षित रखा जाता है। जिससे फिर से धर्म की स्थापना हो सके। वह सिंहस्थ जो एक नगरी को न दिन में थकने देता है और जहां लोग रात्रि में भी अपने पैर नहीं रोकते बस संतों के पांडालों की ओर और मोक्षदायिनी शिप्रा के घाटों की ओर चल पड़ते हैं।

वास्तव में सिंहस्थ उस भारतीय संस्कृति का परिचायक है जो यह दर्शाती है कि हम कितने ही आधुनिक हो जाऐं समाज और राष्ट्र की प्रगति में लगे संतों के आगे झुकना नहीं भूलते। यह आयोजन बताता है कि हम देशवासी, अपना सबकुछ त्याग देने वाले संतों को ऐसा सत्कार प्रदान करते हैं जो उन्हें अपना बना देता है। सिंहस्थ 2016 के प्रथम शाही स्नान का प्रारंभ होते ही लाखों श्रद्धालु साधु - संतों के आगे नतमस्तक हो गए तो वहीं रास्ते घाटों की ओर जाने लगे।

संतों और साधुओं का भव्य पेशवाई के तौर पर नगर आगमन और फिर इसी तरह से स्नान के लिए निकलना और उनके हाथों में तलवार, धर्म दंड, अस्त्र आदि होना यह दर्शाता है कि जिन संतों का कमंडल और हाथ लोगों को समृद्ध करने के लिए होता है वे ही संत और महर्षि जरूरत पड़ने पर दधिची बन जाते हैं। इन साधुओं ने धर्म की रक्षा के लिए खालसाओं को तैयार कर अपने डेरों में रहने वालों के बीच युद्ध कौशल को भी विकसित किया।

यह भी हम सिंहस्थ के आयोजन से जान पाते हैं। सिंहस्थ का यह महोत्सव केवल नदी में स्नान कर लेना ही नहीं है बल्कि यह हमारी आस्था के उस सौपान से जुड़ा है जो यह बताती है कि भले ही हमें जड़ों से काटने के कितने ही प्रयास किए जाऐं हम उतने ही मजबूत होते चले जाऐंगे। हां, हमारी मजबूती का स्वरूप कुछ मिश्रित हो सकता है। मगर संतों और साधुओं के प्रति हमारी आस्था कभी कम नहीं होगी। 

'लव गडकरी'

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