पानी - पानी बह गया, हो गया सब बेपानी
पानी - पानी बह गया, हो गया सब बेपानी
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भारतमाता जिसके बारे में कहा जाता है कि यह गांवों में ही निवास करती है। सच भी है अत्याधुनिक सुविधाओं और डिजिटल इंडिया के अस्तित्व में आने के बाद भी भारत की अधिकांश आबादी गांवों में निवास करती है। ऐसे में भारत के लिए कृषि एक बड़ा आधार हो जाती है। उद्योगों को भी कृषि से ही कच्चा माल मिलता है। मगर जब गांवों में निवास करने वाले जन ही बदहाल हों तो भारत कैसे खुशहाल हो सकता है।

इस बात को इस तरह से समझा जा सकता है कि किसान ही त्यौहार पर सबसे ज़्यादा खरीदी करता है। जब किसान खरीदी करता है तो शोरूम में बैठा शहरी इंसान दमकता है। ऐसे में भारत की तरक्की गांवों पर ही निर्भर है। विकास के लिए कई सुविधाओं की आवश्कता होती है जल इनमें से एक है। इंडस्ट्री, खेतों और लोगों को जल की आवश्यकता होती है।

मगर वर्तमान में जल सीमित होता जा रहा है। हालात ये हैं कि देश के उन राज्यों में भी कई क्षेत्र सूखे की चपेट में हैं जहां जमकर बारिश हुई और बाढ़ के हालात बने। इतना पानी गिरने के बाद भी सबकुछ बेपानी रहा। नतीजा यह रहा कि कई क्षेत्रों को सूखा ग्रस्त घोषित करने की मांग की जा रही है। तो किसानों के लिए राहत दिए जाने की बात हो रही है।

अब तो किसानों और ग्रामीणों के रोजगार के साथ उनके परिवार की रोटी की चिंता है। स्थिति यह है कि न केवल मराठवाड़ा बल्कि मध्यप्रदेश, बुंदेलखंड के कुछ क्षेत्र भी सूखे की मार झेल रहे हैं। यही नहीं इस वर्ष का एक बड़े आयोजन के लिए मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में एक दिन छोड़कर जलप्रदाय किया जा रहा है।

इसका तर्क यह दिया गया है कि सिंहस्थ 2016 के लिए पर्याप्त जल आपूर्ति रहे इसके लिए ऐसा किया जा रहा है। जबकि शहर में बारिश के मौसम में करीब 3 बार नदी में उफान आया था। इसके बाद भी वर्षा का जल सहेजकर नहीं रखा जा सका। आखिर ऐसा क्यों हुआ इस पर विचार नहीं किया गया। या फिर वर्षापूर्व जल को सहेजने के उपाय नहीं किए गए।

फलस्वरूप मुट्ठी कट्ठी करते चले जाने पर रेत मुट्ठी से फिसलती चली गई। न तो जल को सहेजने के लिए पर्याप्त उपाय किए गए और न ही जल के अपव्यय को रोका गया। जल का अपव्यय रोकने के कई तरीके हो सकते हैं मगर इन पर ध्यान नहीं दिया गया। बारिश का मौसम बीत जाने के बाद कुछ ही महीनों में सूखे की स्थिति आ जाती है।

तो दूसरी ओर भू - जल को सहेजने की क्षमता कम होने से जल धरती के अंदर भी नहीं पहुंच पाता है। अधिकांश जल बहकर निकल जाता है और जीवन बिन पानी रह जाता है। हालांकि कुछ क्षेत्रों में पौधारोपण, भूजल संवर्द्धन को लेकर प्रयास किए जा रहे हैं लेकिन ये नाकाफी साबित हो रहे हैं। इन प्रयासों को बढ़ाकर भूजल सहेजा जा सकता है। बारिश के पानी का संग्रहण भी बेहद आवश्यक है। यदि सही विधियों से जल को सहेजा गया तो सूखे की मार झेल रहे क्षेत्रों में पानी भी पहुंचाया जा सकता है। 

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