जब मन पर भारी हो टेंशन, करें उज्जैन दर्शन !
जब मन पर भारी हो टेंशन, करें उज्जैन दर्शन !
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जब आपका मन जीवन की भागदौड़ और हर रोज़ की टेंशन से छुटकारा चाहे। जब आप सुकून के पल गुज़ारना चाहें, मगर आपको चिंता हो कि आपके बच्चे के लिए ज़रूरी सामग्री वहां मिलेगी या नहीं। आप थकान से निजात पाने जा रहे हैं मगर ऐसा तो नहीं आपका सफर धूल भरी सड़कों से हो जाए और आप और पज़ल्ड हो जाऐं। नदियों के किनारों पर बने मंदिरों में दर्शन करने के बाद जब आप अपने लिए पीज़ा, बर्गर या अच्छी क्वालिटी का भोजन करना चाहते हों तो आपको मिल सके।

अरे हां, आपकी ट्रेवलिंग के बीच यदि आप अपनी फैमिली को अपने फोटाग्राफ शेयर करना चाहते हों मगर आपके इंटरनेट नेटवर्क के लिए आवश्यक बैलेंस समाप्त हो जाए तब आपको वोडाफोन का छोटा रिचार्ज मिल सके। जब आप अपनों के लिए कुछ खास खरीदना चाहते हों तो आप वह सबकुछ खरीद सकें। यही नहीं कहीं प्रकृति के सुरम्य आनंद के बाद जब अपने पार्टनर के साथ सुकून भरी काॅफी के प्याले आप लेना चाहें तो आपको वह सब कहां मिले।

जी हां, यह सब आपको मिल सकता है। एक ऐसे शहर में जिसे मंदिरों का शहर कहा जाता है। यूं तो इस शहर को रोजगार और औद्योगिक विकास के पायदान पर पिछड़ा हुआ माना जाता है। मगर इस शहर में अत्याधुनिक सुविधाओं की भी कोई कमी नहीं है। यह शहर दो तरह की मान्यताओं में जीता है एक आधुनिक और दूसरी पौराणिक। इस शहर को उज्जयिनी, अवंतिका, विशाला, कनकश्रृंगार न जाने कितने ही नामों से जाना जाता है लेकिन आधुनिक दौर में इस शहर को उज्जैन के नाम से जाना जाता है।

मध्यप्रदेश के पांच बड़े शहरों में शुमार उज्जैन निरंतर आधुनिकता और विकास को छू रहा है। हां आज भी यहां पर परंपरा और पुरानी सोच कायम है। इस शहर के दो क्षेत्रों को क्रमशः नए शहर और पुराने शहर के तौर पर जाना जाता है। हालांकि अतिप्राचीन उज्जैन गढ़कालिका के टीलों और इसके आसपास तक सीमित था लेकिन कालांतर में इस क्षेत्र का भी विकास होता चला गया। पुराना शहर चामुंडा माता तक माना जाता है।

जबकि नया शहर स्व. ठाकुर शिवप्रताप सिंह ओव्हर ब्रिज के एक किनारे से शुरू होकर इंदौर, देवास जैसे शहरों की सीमाओं को छूने लगा है। इन शहरों में अलग - अलग मान्यताऐं बसती हैं लेकिन आसमान में सूर्य की लालीमा छाने के साथ ही यहां के वातावरण में घंटों की गूंज सुनाई देने लगती है। मां शिप्रा के चरणों में सूर्य सोने सी रश्मियों से अपना नमन करते हैं। कोहरे से ढंकी सर्द सुबह में भी बुजुर्ग, बच्चे, महिलाऐं स्नान करते हैं।

आज भी इस पुराने शहर में फसल कटाई के बाद फुर्सत के क्षणों में बैठे किसान पाचे और अष्ट, चंग, पे जैसे खेल खेलते हैं। हां, मगर जब नज़र नए शहर की ओर दौड़ती है तो यह किसी विकसित उपमहानगर से कम नज़र नहीं आता। काॅर्पोरेट भवन, इन भवनों में चमचमाते फर्श पर चलते दफ्तर तो यहां पर मौजूद हैं लेकिन आधुनिक माॅल भी लोगों की सुविधा के लिए तनकर खड़े हैं। मध्यप्रदेश के धार्मिक पर्यटन नगर के तौर पर इसे विकसित किए जाने के प्रयासों का नतीजा यह है कि यहां पर कई सुविधाऐं पर्यटकों को उपलब्ध है।

सिंहस्थ जैसे महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सव के चलते यहां पर फाईव स्टार और कई विलासी होटल निर्मित हो चुके हैं।  निकट भविष्य में सिंहस्थ 2016 का आयोजन होना है ऐसे में इस धर्म नगरी में हर आधुनिक सुविधा को उपलब्ध करवाया जा रहा है। हां मगर रोजगार प्राप्ति के लिए आज भी यहां के बाशिंदे इंदौर, देवास जैसे अन्य शहरों पर बहुत हद तक निर्भर हैं। 

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