श्री महाकालि के भक्त ने दिया विवेकानंद जैसा कृपा प्रसाद
श्री महाकालि के भक्त ने दिया विवेकानंद जैसा कृपा प्रसाद
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कहा जाता है कि श्रेष्ठ शिष्य के पीेछे परमश्रेष्ठ गुरू होते हैं। क्रिकेट के महान सितारे सचिन तेंडुलकर को ही लीजिए यदि रमाकांत आचरेकर न होते तो भारत को भारत रत्न के तौर पर महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंडुलकर नहीं मिलते। स्वामी रामकृष्ण परमहंस भी ऐसा ही एक नाम रहा है। दरअसल स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद जैसे शिष्य को तैयार किया जिन्होंने न केवल भारतीय धर्म - दर्शन का परिचय अमेरिका के विश्व धर्म सम्मेलन में दिया बल्कि उन्होंने सच्चे धर्म का अर्थ बताया। स्वामी जी ने भारत के लाखों निवासियों को भारतीय होने का अर्थ समझाया।

युवाओं को जागृत किया। ऐसे विवेकानंद के विवेक को जागृत करने वाले और कोई नहीं बल्कि श्री महाकाली के परम भक्त स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस थे। उन्होंने स्वामी विवेकानंद को साक्षात् श्री महाकाली मां के दर्शन करवाए थे। वे पश्चिम बंगाल के कलकत्ता के श्री दक्षिणेश्वर काली माता के पूजक थे। वे कठोर साधक थे और अपनी साधना और भक्ति में उन्होंने जीवन बिताया। उनके नाम पर आज रामकृष्ण मिशन श्रेष्ठ कार्य कर रहा है।

इस मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने ही की थी। श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी को 1836 में हुआ था। पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर गांव में उनका जन्म हुआ था। रामकृष्ण परमहंस का बचपन का नाम गदाधर था। उनके पिताजी का नाम खुदिराम और माताजी का नाम चंद्रमणी था। श्रद्धालुओं के अनुसार रामकृष्ण के माता - पिता को उनके जन्म से पूर्व अलौकिक घटनाओं  और दृश्यों का अनुभव भी हुआ।

दरअसल एक आश्चर्यजनक बात यह सामने आती है कि स्वामी रामकृष्ण परमहंस के पिता खुदीराम ने स्वप्न में देखा था कि भगवान गदाधर अर्थात् श्री हरि विष्णु उनके पुत्र के तौर पर जन्म लेंगे। उनकी माता चंद्रमणि देवी को भी इस तरह का अनुभव हुआ। उनकी माता को ऐसा लगा जैसे शिव मंदिर में उनके गर्भ में कोई दीव्य तेज समा रहा है। हालांकि 7 वर्ष की आयु में ही बालक गदाधर के पिता की मृत्यु हो गई। इसके बाद उन्हें आर्थिक कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। 1855 में स्वामी रामकृष्ण परमहंस के बड़े भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय को दक्षिणेश्वर काली मंदिर के प्रमुख पुजारी के तौर पर रानी रशमोनी ने नियुक्त करवाया था।

रामकृष्ण और उनके भांजे हृदय रामकुमार उनकी पूजन कार्य में सहायता करते थे। उनके भाई रामकुमार की मृत्यु के बाद रामकृष्ण मंदिर में पुरोहित नियुक्त हुए। रामकृष्ण अपने भाई की मृत्यु के बाद अधिक ध्यान में डूबने लगे। ऐसे में काली माता की मूर्ति को वे अपनी माता और ब्रह्मांड की माता के तौर पर देखने लगे। हालांकि उनके बारे में यह अफवाह फैल गई थी कि आध्यात्मिक साधना के चलते रामकृश्ण का मानसिक संतुलन खराब हो गया था।

रामकृष्ण की माता और उनके बड़े भाई रामेश्वर रामकृष्ण का विवाह करवाने की तैयारी करने लगे। रामकृष्ण ने भी उन्हें उनके लिए कन्या देखने के लिए कहा। दरअसल एक कन्या जयरामबाटी में रहती थी। उसका नाम था शादामनि (सारदा) मुखोपाध्याय। रामकृष्ण का विवाह शादामनि के साथ हो गया।रामकृष्ण सन्यासी जीवन जीया करते थे। स्वामी रामकृष्ण की साधना की बातें लोगों के बीच फैलने लगी और कई लोग यहां आने लगे।

स्वामी जी ने स्वामी विवेकानंद को प्रेरित किया जिससे वे मानवता की सेवा के लिए तैयार हो गए। श्री रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी जी को कहा था कि वे हिमालय न जाकर दरिद्रनारायण की सेवा करें। श्री रामकृष्ण जी के जीवन का अंतिम दिन 16 अगस्त 1888 था। वे इस देह को त्यागकर समाधिस्थ हो गए। 

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