हालाँकि डोकलाम विवाद पर 28 अगस्त को चीन से समझौता हो गया है. दोनों देश अपनी सेनाएं विवादित इलाके से हटाने को सहमत हो गए हैं, लेकिन चीन को निर्यात बढ़ाने की राह पर भारत को बिना रुके आगे कदम बढ़ना जरूरी हो गया है.
गौरतलब है कि भारत-चीन व्यापार असंतुलन बढ़ रहा है.जहां भारत से चीन को किए जा रहे निर्यात लगातार घट रहे हैं, वहीं चीन से आयात लगातार बढ़ रहा है. नए आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2016-17 में भारत-चीन व्यापार 71.47 अरब डॉलर का हुआ . चीन को भारत से 10.19 अरब डॉलर मूल्य के निर्यात किया गया. जबकि चीन से आयात का मूल्य 61.28 अरब डॉलर रहा. व्यापार घाटा 47.68 अरब डॉलर का रहा. यानी चीन ने भारत को पांच गुना अधिक निर्यात किया.
बता दें कि भारत और चीन के बीच विदेश व्यापार के पिछले तीन वर्षो के आंकड़ों का विश्लेषण से भी यह निराशाजनक तस्वीर उभर कर सामने आई है कि गत तीन वर्षो में चीन से आयात लगातार बढ़े हैं और चीन को भारत से निर्यात लगातार घटे हैं. साथ-साथ व्यापार घाटा भी प्रतिवर्ष बढ़ता गया है. इस घाटे को नियंत्रित करना जरुरी है .
हालाँकि अक्टूबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक के बाद चीन के द्वारा पाकिस्तान का समर्थन किये जाने के कारण चीनी माल का बहिष्कार किये जाने से भारतीय बाजारों में चीनी सामान की बिक्री में 30 से 40 फीसद की कमी आई थी. यह भावना हमेशा रखकर चीनी वस्तुओं का बहिष्कार करने पर ही यह चीनी आयात रुकेगा. इसके अलावा भारत द्वारा भी चीन के लागत से कम मूल्य पर माल भेजकर और चीन के कई तरह के माल पर एंटी डंपिंग ड्यूटी लगाकर उसे हतोत्साहित कर इस लक्ष्य को पाया जा सकता है. देश के करोड़ों उपभोक्ताओं का भी दायित्व है कि वे स्वेच्छा से स्वदेशी वस्तुओं के उपयोग और उपभोग को बढ़ाएं, ताकि चीन से बढ़ते हुए आयात पर नियंत्रण हो और विदेश व्यापार का असंतुलन भी कम हो जाए.
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