विरोध और विकास की राजनीति के बीच शिवसेना के बढ़ते कदम!
विरोध और विकास की राजनीति के बीच शिवसेना के बढ़ते कदम!
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बालासाहेब ठाकरे के परलोक सिधारने और उनके भतीजे राज ठाकरे के शिव सेना से अलग हो जाने के बाद इसे साॅफ्ट काॅर्नर माना जाने लगा। माना गया कि शिवसेना में अब उस रौब की बात नहीं रही जिसके लिए वह जानी जाती थी। कहा जाने लगा कि शिवसेना की कमान उद्धव के हाथ में आने से शिवसेना कुछ नरम पड़ गई है। अब वह नरम रूख अपनाने वाले दलों में शामिल होती जा रही है। फिर यह भी कहा जाने लगा कि अब इस तरह के विरोध की राजनीति को पसंद नहीं किया जाता।

मगर शिवसेना का महाराष्ट्र की राजनीति में प्रभाव बना रहा और वह सत्तारूढ़ गठबंधन में अपनी अहमियत रखने में सफल रही। मगर शिवसेना ने सीधे तौर पर उग्र प्रदर्शनों के माध्यम से बिहारियों का विरोध मराठी मानुष की बात करना बंद कर दिया। शिव सेना कुछ नए मसलों को लेकर सामने आई और विकास की राजनीति पर ध्यान दिया। मगर हाल ही में पाकिस्तानी फनकारों और पाकिस्तान की हस्तियों के भारत में प्रवेश और उनके कार्यक्रमों को लेकर जिस तरह का विरोध शिवसेना ने दिखाया है वह उसके पुराने पैटर्न की याद दिलवाता है। 

पाकितानी गज़ल गायक गुलाम अली के कार्यक्रम को लेकर शिवसेना ने चेतावनी दी तो मुंबई और पुणे में कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया, मगर पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री खुर्शीद कसूरी की पुस्तक के विमोचन को रद्द न किए जाने पर शिवसैनिक भड़क उठे और आयोजक सुधींद्र कुलकर्णी के चेहरे पर स्याही फैंक दी।

शिव सेना के देशप्रेम को लोगों द्वारा पसंद किया जाता रहा है लेकिन इस तरह के विरोध की राजनीति को लोग दरकिनार करने लगे हैं। हालांकि शिवसेना का यह तर्क तो समझ में आता है कि जो देश भारत की सीमाओं पर गोलीबारी कर रहा हो वहां के कलाकार और हस्तियों को कैसे न्यौता दिया जा सकता है मगर स्याही फैंकने और तोड़फोड़ करने की ऐसी राजनीति का विरोध किया जा रहा है। 

पहले भी शिवसेना द्वारा इस तरह का विरोध जताया जाता रहा है। शिवसेना के पूर्व सुप्रीमो स्व. बाळठाकरे के कार्यकाल में तो भारत और पाकिस्तान के मैचों को रद्द न किए जाने पर शिवसैनिक पिच तक खोद चुके हैं। मगर विरोध का यह अलोकतांत्रिक तरीका अब पुराना हो चुका है। अपनी बात कहने और विरोध करने का अधिकार सभी को है लेकिन उसका तरीका भी सही होना जरूरी है। सत्ता के साथ गठबंधन में बैठे दल से लोगों को सद्भाव की राजनीति की अपेक्षा है जो इसके प्रभाव वाले सभी क्षेत्रों को विकास की ओर ले जाए। 

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