अनुच्छेद 370 मामले में SC की दो टूक- 'जम्मू-कश्मीर में ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का सवाल ही नहीं'
अनुच्छेद 370 मामले में SC की दो टूक- 'जम्मू-कश्मीर में ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का सवाल ही नहीं'
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जम्मू: जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है। मंगलवार को अदालत ने बड़ी टिप्पणी की। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा, जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने पर ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है। कोर्ट इस बात पर आकलन कर रहा है कि इसे रद्द करना क्या संवैधानिक रूप से कानूनी था। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है, जहां इसके निवासियों की इच्छा केवल स्थापित संस्थानों के माध्यम से ही सुनिश्चित की जा सकती है। ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने को 'ब्रेक्जिट' नाम दिया गया था। ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से बाहर निकलना राष्ट्रवादी उत्साह में वृद्धि, मुश्किल इमिग्रेशन नियमों एवं संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था की वजह से हुआ है। ब्रेक्जिट को लेकर ब्रिटेन में 2016 में जनमत संग्रह हुआ था। जिसमें लोगों का बहुमत ब्रिटेन के यूरोपीय संघ से अलग होने के पक्ष में था। जनमत संग्रह के रुझान के पश्चात् कैमरन सरकार को इस्तीफा देना पड़ा था। तब कंजरवेटिव पार्टी की थेरेसा मे की अगुवाई में सरकार बनी थी।

मंगलवार को CJI की अध्यक्षता वाली 5 जजों की संविधान पीठ की 'ब्रेक्जिट' को लेकर यह टिप्पणी वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की एक दलील के पश्चात् आई। सिब्बल ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करना ब्रेक्जिट की भांति ही एक राजनीतिक कदम था, जहां ब्रिटिश नागरिकों की राय जनमत संग्रह से ली गई थी। बता दें कि अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त था। आगे सिब्बल ने कहा, जब 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त किया गया, तब ऐसी किसी से रायशुमारी नहीं की गई। सिब्बल नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन की ओर से पेश हुए। लोन ने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती दी है। सिब्बल ने कहा, संसद ने जम्मू-कश्मीर पर लागू संविधान के प्रावधान को एकतरफा बदलने के लिए अधिनियम को अपनी अनुमति दे दी। यह सबसे बड़ा सवाल है कि इस कोर्ट को यह तय करना होगा कि क्या भारत सरकार ऐसा कर सकती है। सिब्बल ने जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की अनुपस्थिति में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने की संसद की शक्ति पर बार-बार सवाल उठाया है। उन्होंने निरंतर कहा, केवल संविधान सभा को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने या संशोधित करने की सिफारिश करने की शक्ति निहित थी। चूंकि संविधान समिति का कार्यकाल 1957 में समाप्त हो गया था, इसलिए जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संवैधानिक प्रावधान को स्थाई मान लिया गया। सिब्बल ने जोर देकर कहा, यह कोर्ट ब्रेक्जिट को याद रखेगा। ब्रेक्जिट में जनमत संग्रह की मांग करने वाला कोई संवैधानिक प्रावधान (इंग्लैंड में) नहीं था। मगर, जब आप किसी ऐसे रिश्ते को तोड़ना चाहते हैं तो आपको लोगों की राय लेनी चाहिए। क्योंकि इस फैसले के केंद्र में लोग हैं, ना कि केंद्र सरकार। संविधान पीठ में CJI के अतिरिक्त, जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना, बीआर गवई और सूर्यकांत भी सम्मिलित हैं। 

हालांकि, CJI चंद्रचूड़ सिब्बल की दलीलों से प्रभावित नहीं हुए। CJI ने कहा, संवैधानिक लोकतंत्र में लोगों की राय जानने का काम स्थापित संस्थाओं के माध्यम से किया जाना चाहिए। इसलिए आप ब्रेक्जिट जैसे जनमत संग्रह जैसी स्थिति की कल्पना नहीं कर सकते। उन्होंने सिब्बल के इस विचार से सहमति जताई कि ब्रेक्जिट एक राजनीतिक फैसला था, मगर हमारे जैसे संविधान के अंदर जनमत संग्रह का कोई सवाल ही नहीं है। दिनभर बहस करने वाले सिब्बल ने कहा, अनुच्छेद 370 एक अस्थायी या स्थायी प्रावधान था, अब इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्होंने कहा कि आखिरी सवाल यह है कि क्या भारत सरकार उस रिश्ते को समाप्त कर सकता है जिसे अनुच्छेद 370 के तहत संवैधानिक मान्यता दी गई थी। यह अप्रासंगिक है। अस्थायी या स्थायी कोई फर्क नहीं पड़ता। जिस प्रकार से यह किया गया वह संविधान के साथ धोखा है। यह राजनीति से प्रेरित कृत्य है। फिलहाल, स्थायी या अस्थायी मुद्दा नहीं है। मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि शायद ऐसा करने का एक संवैधानिक तरीका है। हालांकि, मैं उस (मुद्दे) को संबोधित नहीं कर रहा हूं और न ही उन्होंने (केंद्र) संवैधानिक पद्धति का सहारा लिया है। सिब्बल का कहना था कि आप मध्य प्रदेश या बिहार को दो केंद्र शासित राज्यों में विभाजित नहीं कर सकते। यह लोकतंत्र का प्रतिनिधि स्वरूप है। ऐसे में जम्मू-कश्मीर के लोगों की आवाज कहां है? प्रतिनिधि लोकतंत्र की आवाज कहां है? 5 वर्ष गुजर गए...क्या आपके पास प्रतिनिधि लोकतंत्र का कोई रूप है? इस प्रकार पूरे भारत को केंद्र शासित प्रदेश में बदला जा सकता है। सिब्बल ने अपनी दलीलें ख़त्म करते हुए कहा, मुझे उम्मीद है कि यह कोर्ट चुप नहीं रहेगी।

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