'प्रधानमंत्री को जूते मारना चाहिए..', कहना 'देशद्रोह' नहीं ! कर्नाटक हाई कोर्ट ने रद्द की अलाउद्दीन-अब्दुल समेत 4 पर दर्ज FIR
'प्रधानमंत्री को जूते मारना चाहिए..', कहना 'देशद्रोह' नहीं ! कर्नाटक हाई कोर्ट ने रद्द की अलाउद्दीन-अब्दुल समेत 4 पर दर्ज FIR
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बैंगलोर: कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार (5 जुलाई) को जारी एक आदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी के आरोप में दर्ज किए गए देशद्रोह के मामले में एक स्कूल के मैनेजमेंट को बड़ी राहत दी है। दरअसल, अदालत ने यह तो माना कि प्रधानमंत्री पर की गई टिप्पणी अशोभनीय है, मगर ये देशद्रोह नहीं है। हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद अलाउद्दीन सहित 3 अन्य लोगों पर दर्ज देशद्रोह की FIR निरस्त कर दी गई है। इन सभी पर जनवरी 2020 में स्कूल के एक नाटक के मंचन के दौरान प्रधानमंत्री को जूते से मारने जैसी अपमानजनक टिप्पणी के आरोप में देशद्रोह का मामला दर्ज किया गया था।

रिपोर्ट्स के अनुसार, यह आदेश न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर की अदालत में सुनवाई के दौरान आया। बीदर के शाहीन स्कूल मैनेजमेंट के अलाउद्दीन, अब्दुल खालिक, मोहम्मद बिलाल इनामदार और मोहम्मद महताब ने अपने खिलाफ न्यू टाउन पुलिस स्टेशन में दर्ज FIR को निरस्त करने की मांग करते हुए याचिका लगाई थी। मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति हेमंत चंदनगौदर ने कहा कि स्कूल में नाटक के मंचन के दौरान बोले गए शब्द कि ‘प्रधानमंत्री को जूते से मारा जाना चाहिए’ न सिर्फ गैर जिम्मेदाराना बल्कि अपमानजनक भी था, मगर इसे देशद्रोह नहीं माना जा सकता।

अदालत ने आगे कहा कि IPC में देशद्रोह की धारा 124 तब ही लागू हो सकती है, जब कहे गए शब्दों से कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने की आशंका हो। अदालत का कहना है कि, आरोपितों द्वारा बोले गए शब्दों से इस प्रकार के किसी इरादे का होना प्रमाणित नहीं हो पाया है। कोर्ट ने आगे कहा कि देश के नागरिकों को सरकार और उसके पदाधिकारियों द्वारा लिए गए फैसलों की आलोचना या टिप्पणी का अधिकार है बशर्ते उस से लॉ एन्ड आर्डर बिगड़ने जैसी स्थिति पैदा न हो।

क्या है पूरा मामला:-

बता दें कि कर्नाटक के जिला बीदर स्थित शाहीन स्कूल में वर्ष 2020 में एक नाटक का आयोजन करवाया गया था, जिसमें किरदार के रूप में क्लास 4 के बच्चों को रखा गया था। इस नाटक को CAA और NRC के विरोध पर बनाया गया था। मंचन के दौरान प्रधानमंत्री को जूते मारने जैसे अपमानजनक शब्द कहे गए थे। इस नाटक को साम्प्रदायिक सोच से प्रेरित बताते हुए नीलेश नामक एक शख्स ने बीदर थाने में शिकायत दी थी। इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने IPC की धारा 504, 505 (2), 124 (ए) और 153 (ए) के तहत एक्शन लिया था। हालाँकि शाहीन ग्रुप ऑफ इंस्टिट्यूशन ने अपने आप पर लगे आरोपों से इंकार किया था। स्कूल मैनेजमेंट ने पुलिस पर अपने साथ देशद्रोहियों जैसा व्यवहार करने का इल्जाम लगाया था। साथ ही उच्च न्यायालय में इस FIR को निरस्त करने की याचिका दाखिल की गई थी।

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