Video: कुछ ऐसे है किरदार की गहराई में उतरने वाले संजय मिश्रा
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ज़िंदगी में हर कोई अपनी मंजिल पर आगे बढ़ने के लिए एक मुसाफिर की तरह अपने सफर की शुरुआत करता है, सफर शुरू होते-होते कब कोई मुसाफिर ज़िंदगी की गुमनामी में गुम हो जाता है पता नहीं चलता, वो मुसाफिर थक जाता है लेकिन हार नहीं मानता, वो हौसले से भरा उड़ता हुआ एक परिंदा बन फिर अपने सफर पर निकल पड़ता है और बन जाता है एक ऐसा नाम जिसे हम संजय मिश्रा कहते है. 

जी हाँ बॉलीवुड में वैसे तो हर कोई स्टार या सेलिब्रिटी होता है लेकिन असल मायने में अभिनय को किस तरह किरदार में उतार कर उसको ज़िंदा किया जाता है ये कोई संजय मिश्रा से सीखे, हम बात कर रहे है बिहार के दरभंगा में जन्मे संजय मिश्रा के बारे में, संजय मिश्रा बॉलीवुड के उन अभिनेताओं में शुमार है जिन्होंने अपने अभिनय के अंदाज से एक ऐसा मुकाम पाया है जो शायद ही किसी हासिल हुआ हो, इसके पीछे अगर संजय की कठिन मेहनत है तो दूसरी ओर ज़िंदगी को एक अलग ढंग से देखने का नजरिया. 

बचपन से ही संगीत में रूचि रखने वाले संजय को शायद आज तक पता नहीं चला वो असल में बने किसलिए है, संजय खुद को एक सच्चा कलाकार मानते है साथ ही वो मानते है 'मैं पैदा ही कलाकार हुआ हूँ' 1989 में नेशनल स्कुल ऑफ़ ड्रामा दिल्ली से पास होने वाले संजय ज़िंदगी को एक अलग नजरिये से देखते है, यही कारण था कि जहाँ एक ओर उनके साथ ड्रामा स्कुल में पढ़ने वाले सभी लोग एक्टर बनने के लिए मुंबई चले और संजय ने बिहार की बस पकड़ ली और शौकिया तौर पर फोटोग्राफी करने की ठानी.

संजय के लिए ज़िंदगी का सफर कहाँ शुरू हुआ और कहाँ खत्म ये शायद उन्हें भी नहीं मालूम, कुछ समय बाद मुंबई आये और विज्ञापनों में काम शुरू किया, ढेरों विज्ञापन करने के बाद मिरिंडा कोल्डड्रिंक में अमिताभ बच्चन के साथ विज्ञापन करने के संजय को लोगों के बीच नई पहचान मिली. उसके बाद संजय टीवी सीरियल में काम करने लगे 1991 में आये सीरियल चाणक्य के बाद ऑफिस-ऑफिस में शुक्ला जी के किरदार से उन्हें जो पहचान मिली उसी का नतीजा है संजय इंडस्ट्री में एक कॉमेडियन बनकर उभरे, और लोगों के बीच छा गए. 

1995 में संजय को बॉलीवुड में अपनी पहली फिल्म 'ओह डार्लिंग ये इंडिया है' ऑफर हुई जिसमें एक संगीत वादक का छोटा सा किरदार निभाया, उसके बाद लगातार फ़िल्में करते हुए एक समय ऐसा आया जब संजय मिश्रा ने कई फिल्मों में काम किया जैसे दिल से, सत्या,गोलमाल सीरीज, आदि. 

संजय की ज़िंदगी में एक समय सब कुछ अच्छा चल रहा था लेकिन 4 बच्चों में पिता से बेहद लगाव रखने वाले संजय को एक दिन भारी सदमा लगा जब पिता का अचानक स्वर्गवास हो गया. ये समय ऐसा था जब सबको हंसाने वाला ये कलाकार अपनी ज़िदगी में खुद को हारा हुआ महसूस करने लगा और ऋषिकेश चला गया, ऋषिकेश में एक ढाबे पर दिन की लोगों को खाना खिलाने से होती थी फिर वहीं थक कर सो जाना और ऐसे ही संजय ने लम्बा समय ढाबे पर बीता दिया लेकिन किसी ने उनको पहचाना नहीं, संजय ने उस दौर में अपनी पूरी ज़िंदगी ऐसे ही मुफलिसी में गुजारने की ठान ली थी, लेकिन कहते है ना भटके हुए सच्चे मुसाफिरों के लिए मंजिल खुद रास्ते भेजकर उन्हें अपने पास बुला लेती है. ऐसे ही एक दिन ढाबे पर गोलमाल में संजय के निर्देशक रहे रोहित शेट्टी का आना हुआ. रोहित ने संजय मिश्रा को पहचान लिया और फिर से मुंबई चलने के लिए संजय को मनाया. 

यही वो दौर था जब संजय ने एक बार फिर से अपने सफर की शुरुआत की और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, उसके बाद लगातार फ़िल्में करते रहे, संजय को ढेरों अवार्ड्स मिले. 2014 में आई फिल्म 'आँखों देखी' में बाउजी का किरदार निभाने वाले संजय ने अपने अभिनय से सबको हैरान कर दिया, इसी फिल्म के लिए संजय को 'बेस्ट एक्टर फिल्म क्रिटिक' के नेशनल अवार्ड से नवाजा गया, वहीं फिल्म मसान में उनके अभिनय के लिए उन्हें 'बेस्ट एक्टर' का अवार्ड मिला. 

कॉमेडी में अपना लोहा मनवाने वाले संजय मिश्रा ने बॉलीवुड में अपनी ऐसी छाप छोड़ी है जो सदियों तक लोगों के ज़हन में रहेगी, तकलीफों और संघर्षों से भरी संजय मिश्रा की ज़िंदगी एक ऐसी कहानी है जो समय-समय पर हँसाती तो कभी रुलाती है, साथ ही आत्मविश्वास के साथ आपको आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देती है. 

 

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